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Why was Gopal Bhargava sidelined

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नौ बार लगातार जीते गोपाल भार्गव को मंत्री क्यों नहीं बनाया गया?

Posted by Admin | 2 January, 2024

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मध्य प्रदेश में बीजेपी की बंपर जीत हुई, लेकिन कई पुराने धाकड़ किनारे लगा दिए गए . लगातार 18 साल से सीएम शिवराज को सीएम नहीं बनाया तो नौ बार से लगातार विधानसभा पहुंच रहे गोपाल भार्गव को भी मंत्रीपद नहीं मिला .
तीसरी बार विधायक बने मोहन यादव सीएम बने, 28 विधायकों को मंत्री बनाया गया, 18 विधायक पहली बार मंत्री बने- लेकिन खुद को सीएम का दावेदार बता रहे गोपाल भार्गव को साइडलाइन कर दिया गया.
शिवराज सरकार में रहे 10 मंत्रियों को मोहन यादव सरकार में मौका नहीं मिला, इनमें नौ बार के विधायक गोपाल भार्गव के अलावा भूपेंद्र सिंह, मीना सिंह, डॉ प्रभुराम चौधरी, ऊषा ठाकुर, ओमप्रकाश सकलेचा, हरदीप सिंह डंग, बृजेंद्र सिंह यादव, बृजेंद्र प्रताप सिंह और बिसाहूलाल सिंह भी शामिल राज्य के सबसे सीनियर विधायक और बुंदेलखण्ड में बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता गोपाल भार्गव को आलाकमान से इतनी बेरुखी की उम्मीद नहीं थीं- मंत्रिमंडल के बाद फेसबुक पर लंबा चौड़ा पोस्ट लिख मारा- बहुत सी बातों में एक लाइन जो लिखी- ” अब मैं खाली समय में समाज के लोगों को संगठित कर समाज उत्थान में कार्य करुंगा ” – यहां से लोगों ने इसे धमकी मान लिया। दबाव पड़ा तो गोपाल भार्गव ने पोस्ट से ज़्यादातर बातें हटा दीं- लेकिन संदेश जहां जाना था- पहुंच चुका था। अब सवाल उठता है कि गोपाल भार्गव क्या करेंगे ?

गोपाल भार्गव की शुरुआत

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1 जुलाई 1952 को गढ़ाकोटा में पंडित शंकर लाल भार्गव उर्फ कक्का जी के घर पैदा हुए गोपाल भार्गव ने सागर विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री ली। गोपाल भार्गव छात्र राजनीति में ही बीजेपी से जुड़ गए थे.वह 1980 में पहली बार गढ़ाकोटा नगर पालिका के अध्यक्ष चुने गए थे. इसके बाद 1985 में पहली बार रहली सीट से विधायक चुने गए और उसके बाद कभी चुनाव नहीं हारे. 2003 में उन्हें पहली बार उमा भारती मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था. इसके बाद से वह रिकॉर्ड मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा मंत्री रहने वाले विधायक भी है. गोपाल भार्गव उमा भारती, बाबूलाल गौर और सीएम शिवराज के कार्यकाल में लगातार अलग-अलग विभागों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. जबकि 15 महीने की कमलनाथ सरकार के दौरान वह नेता प्रतिपक्ष थे. तो जाहिर है मध्य प्रदेश की सियासत में गोपाल भार्गव एक बड़ा नाम हैं। गोपाल भार्गव ने सागर जिले की रहली सीट से पहली बार 1985 में चुनाव जीता था- तब से अब तक पिछले 38 साल से वे रहली के रहनुमा बने हुए हैं। इस चुनाव में उन्होंने 78 हजार से भी ज्यादा वोटों से जीत हासिल की है. 2023 में जब बीजेपी ने शिवराज को सीएम घोषित नहीं किया तो गोपाल भार्गव ने कई जनसभाओं में कहा कि अब मैं सीएम का दावेदार हूं.. बीजेपी के लोगों का कहना है कि अगर गोपाल ने खुद को सीएम प्रोजेक्ट न किया होता तो शायद मंत्री बन जाते, लेकिन कुछ दूसरे दावेदारों को उनसे खतरा लगने लगा, इसलिए उनका पत्ता कटवा दिया गया। इससे नाराज होकर गोपाल भार्गव ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘आज मध्य प्रदेश राज्य के मंत्री परिषद् का पूर्ण-रूपेण गठन हो गया है, मैं नव नियुक्त मंत्रीगणों को अपनी ओर से शुभकामनायें प्रेषित करता हूं। प्रदेश भर से मेरे समर्थक मुझसे पूछ रहे हैं कि ऐसा क्या हुआ है कि आपको मंत्रिमंडल में नहीं लिया गया? मैंने उनसे कहा 40 वर्षों के लंबे राजनैतिक जीवन में अब तक पार्टी ने जो भी जिम्मेदारियां दी हैं, उनको समर्पित भाव से पूर्ण किया है और आगे भी करते रहने के लिए संकल्पित हूं, इसलिए आज मंत्री परिषद् के गठन में पार्टी द्वारा लिए गए निर्णय का मैं स्वागत करता हूं। ‘

बीजेपी का ब्राह्मण चेहरा

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गोपाल भार्गव मध्य प्रदेश में बीजेपी का ब्राह्मण चेहरा भी हैं। बीजेपी को इन चुनावों में 82 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले, जबकि 72 फीसदी सवर्ण वोट मिले।
बघेलखण्ड की रीवा सीट से पांच बार जीते राजेन्द्र शुक्ला को डिप्टी सीएम बनाया गया, लेकिन नौ बार जीते गोपाल भार्गव का पत्ता काट दिया।
वैसे तो राजेन्द्र शुक्ला चार बार मंत्री रहे हैं, लेकिन पिछली शिवराज सरकार में मंत्री नहीं बनाए गए थे, जबकि गोपाल भार्गव तब भी मंत्री थे।
इसके अलावा बीजेपी मध्य प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा के ब्राह्मण होने की वजह से भी गोपाल भार्गव का नुकसान हुआ। बीजेपी ने इस बार मध्य प्रदेश में जिसको भी चुना है, 2024 के लोकसभा चुनाव के समीकरणों को ध्यान में रखकर चुना है। इसी के तहत ग्वालियर-चंबल- से 6 मंत्री, बुंदेलखंड से – 3, विंध्य से -4, महाकौशल से – 3, मध्य भारत से – 8, और मालवा-निमाड़ से – 9 मंत्री बनाए गए। एक तरफ जहां ओबीसी डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया गया। वहीं, एक अनुसूचित जाति और एक अनारक्षित नेता को उप मुख्यमंत्री बनाया गया।
इसके अलावा, 13 ओबीसी, पांच एसी और पांच एसटी, जिसमें पांच महिला भी शामिल हैं, को मंत्री पद दिया गया। अब ऐसे समीकरणों के बीच गोपाल भार्गव का पत्ता कटना तय था।
राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी भार्गव ने इस बार अपने क्षेत्र में चुनाव प्रचार तक नहीं किया। उन्होंने मीडिया में कहा कि उन्हें प्रचार करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि वह पूरे पांच साल लोगों के लिए काम करने में विश्वास करते हैं। जब मोहन यादव सरकार में मंत्री पद नहीं मिला तो गोपाल भार्गव ने कहा कि ”मैं 20 वर्षों तक विपक्ष में रहा। 2003 में जब बीजेपी का सरकार बनी तो कैबिनेट मंत्री बना। उमा भारती की सरकार में कृषि विभाग, राजस्व विभाग, सहकारिता विभाग जैसे आठ बड़े विभाग एक साथ मेरे पास थे, जो आज तक के इतिहास में मध्य प्रदेश में संभव नहीं हुआ।

गोपाल भार्गव को नुकसान क्यों ?

अब सवाल उठता है कि क्या गोपाल भार्गव को जातीय राजनीति न करने का नुकसान हुआ। गोपाल भार्गव भले ब्राह्मण नेता हैं, लेकिन जातीय राजनीति से दूरी बनाकर रखी, यही कारण है कि उनके पास कोई जातीय वोट बैंक नहीं है। सबको साथ लेकर चलने की वजह से वे लगातार चुनाव तो जीत रहे है, लेकिन जातीय नेता के तौर पर पार्टी के लिए उतने उपयोगी नहीं लग रहे जितने राजेन्द्र शुक्ला या वीडी शर्मा। इसलिए गोपाल भार्गव ने अपना दर्द फेसबुक पर लिखी। अब गोपाल भार्गव की रणनीति वीडी शर्मा की जगह प्रदेश अध्यक्ष पद पर आने की होगी। तीन साल का कार्यकाल पूरा कर चुके वीडी शर्मा को लोकसभा चुनाव तक एक साल का विस्तार मिल गया है, इसलिए भार्गव को नंबर एक साल बाद ही आ पाएगा। लेकिन प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए कैलाश विजयवर्गीय भी दौड़ में हैं। ऐसे में अगर गोपाल भार्गव को लगा कि उनकी उपेक्षा हो रही फिर तो वे फिर कड़ा कदम उठा सकते हैं, जैसा कि उनकी धमकी से दिख भी रहा है। इससे बीजेपी के आला नेता थोड़ा परेशान भी है, देखना है अब आगे क्या होता है।

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