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SAHARA INDIA PARIVAR- सहारा इंडिया परिवार में कैसे होती थी ‘धोखाधड़ी’, फंसा पैसा कैसे वापस मिलेगा, पूरी पड़ताल

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Posted by Admin | 17 June, 2025

SAHARA-PIC2 SAHARA INDIA PARIVAR- सहारा इंडिया परिवार में कैसे होती थी ‘धोखाधड़ी’, फंसा पैसा कैसे वापस मिलेगा, पूरी पड़ताल

SAHARA SHREE- क्या आपको कभी किसी ने कुछ ही महीनों में अपने पैसे दुगुने करने का लालच दिया है। जैसे आजकल सोशल मीडिया पर शेयर मार्केट से करोड़पति बनने के ऑफर धड़ल्ले से आते हैं, वैसे अस्सी के दशक में सरकारी बैंकों से हटकर कुछ प्राइवेट एजेन्सियां थीं, जो ग़रीबों को दस रुपये रोज जमा करके लखपति बनाने का सपना बेचती थी। इसी के दम पर ऐसी चिट फंड कंपनियों ने अरबों का साम्राज्य खड़ा कर लिया और ग़रीब तो लखपति नहीं बन पाता था, लेकिन इन कंपनियों के मालिक और चन्द चमचे जिन्दगी भर मौज करते रहे। ऐसी ही एक चिट फंड कंपनी थी सहारा इंडिया। अगर आप अपने आसपास लोगों से बात करेंगे, तो हर दस में से एक शख्स कभी न कभी सहारा इंडिया परिवार से जुड़ा हुआ जरूर मिल जाएगा। 12 लाख लोगों का परिवार यानी देश के 11 फीसदी लोगों को भरोसा, 11 लाख कर्मचारियों को वेतन, जो रेलवे के बाद सबसे ज़्यादा नौकरियां देने वाला ग्रुप बन गया, आखिर ऐसा कौन सा जादुई चिराग था, जो सालों तक लोगों को भरोसा बना रहा ?
कैसे मामूली पूंजी से सहारा श्री सुब्रत राय सहारा ने अरबों का साम्राज्य बनाया, कैसे एक दौर में बॉलीवुड की हसीनाएं सहाराश्री के दरबार में नतमस्तक होने के लिए मचलती रहीं, कैसे उन्होंने महानायक अमिताभ बच्चन को कर्ज से बर्बाद होने से बचाया और कैसे उनका सूरज डूबा, ये सब आज आपको बताएंगे।
दरअसल ये कहानी है एक ऐसे शख्स की, जिसने ₹2000 से शुरुआत करके हजारों करोड़ का साम्राज्य खड़ा किया, लेकिन फिर वो ही साम्राज्य धूल में मिल गया। सुब्रत राय सहारा, जिन्हें लोग ‘सहाराश्री’ कहते थे, एक समय भारत के सबसे रसूखदार और लोकप्रिय लोगों में से एक थे। लेकिन उनकी कहानी में उतार-चढ़ाव, सक्सेस, स्कैंडल, धोखा, जेल और अंत में एक दुखदाई अंत सब कुछ शामिल है। तो चलिए, हैरान कर देने वाली इस कहानी को स्टेप-बाय-स्टेप समझते हैं।

₹2000 से रखी साम्राज्य की नींव

सुब्रत राय सहारा का जन्म 10 जून 1948 को बिहार के अररिया में हुआ था। उनका बचपन साधारण था, लेकिन उनमें कुछ बड़ा करने की आग थी। 1978 में, सिर्फ ₹2000 की पूंजी के साथ, उन्होंने गोरखपुर में सहारा इंडिया परिवार की नींव रखी। उस समय सुब्रत राय स्कूटर पर घूम-घूमकर स्नैक्स बेचा करते थे। इस दौरान उनकी मुलाकात छोटे दुकानदारों, रेहड़ी-पटरी वालों और गरीब तबके के लोगों से हुई। उन्होंने देखा कि इन लोगों के लिए रोज़मर्रा की कमाई को बचाना कितना मुश्किल है।
यहीं से सुब्रत राय को एक आइडिया आया—क्यों न एक ऐसी स्कीम बनाई जाए, जिसमें लोग छोटी-छोटी रकम जमा करें और बाद में अच्छे ब्याज के साथ पैसा वापस पाएं? इस तरह सहारा की चिटफंड स्कीम शुरू हुई। लोगों को ये मॉडल इतना पसंद आया कि देखते ही देखते लाखों लोग सहारा से जुड़ गए। कंपनी का नारा था, “सहारा इंडिया परिवार—आपका परिवार, हमारा परिवार।”
सुब्रत राय ने इसे सिर्फ एक कंपनी नहीं, बल्कि एक परिवार की तरह पेश किया। वो कहते थे कि वो हर उस शख्स का सहारा बनना चाहते हैं, जो मेहनत करता है लेकिन पैसे की तंगी से जूझता है। उनकी इस अपील ने गरीब और मध्यम वर्ग के बीच जबरदस्त विश्वास बनाया।

 

साम्राज्य का विस्तार

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1980 और 1990 के दशक में सहारा ने रॉकेट की तरह उड़ान भरी। कंपनी ने चिटफंड और डिपॉजिट स्कीम्स के जरिए लाखों लोगों से छोटी-छोटी रकम जमा करनी शुरू की। लोग ₹1, ₹5, या ₹10 रोज़ाना जमा करते थे, और सहारा उन्हें अच्छे रिटर्न का वादा करता था। इस मॉडल की वजह से सहारा ने 13 करोड़ से ज्यादा इनवेस्टर्स का भरोअ जीता।
सहारा का बिजनेस सिर्फ चिटफंड तक सीमित नहीं रहा। सुब्रत राय ने इसे एक विशाल साम्राज्य में बदल दिया। कंपनी ने कई सेक्टर्स में कदम रखा:
रियल एस्टेट: सहारा ने देशभर में हजारों एकड़ जमीन खरीदी। लखनऊ में 191 एकड़, मुंबई के वर्सोवा में 106 एकड़, और कुल 10 शहरों में 764 एकड़ जमीन उनके नाम थी।
हॉस्पिटैलिटी: सहारा ने न्यूयॉर्क में दो लग्जरी होटल्स—प्लाजा और ड्रीम न्यूयॉर्क—4400 करोड़ रुपये में खरीदे। ये होटल्स आज भी दुनिया के सबसे मशहूर होटल्स में गिने जाते हैं।
मीडिया और एंटरटेनमेंट: सहारा ने ‘सहारा वन’ टीवी चैनल और ‘सहारा समय’ न्यूज चैनल शुरू किए। इसके अलावा, उन्होंने कई बॉलीवुड फिल्में भी प्रोड्यूस कीं।
स्पोर्ट्स: सहारा ने पुणे वॉरियर्स नाम की आईपीएल टीम खरीदी और भारतीय क्रिकेट और हॉकी टीम को स्पॉन्सर किया।
सहारा सिटी: सबसे हैरान करने वाली बात थी सहारा सिटी प्रोजेक्ट। लखनऊ में 200 एकड़ में फैली इस टाउनशिप में क्रिकेट स्टेडियम, गोल्फ कोर्स, हेलीपैड, सिनेमा हॉल, हेल्थ सेंटर और तमाम लग्जरी सुविधाएं थीं।
अंबे वैली: मुंबई से 2 घंटे की दूरी पर 10,600 एकड़ में फैली इस टाउनशिप में 800 लग्जरी बंगले, मैन-मेड झीलें, रेस्टोरेंट्स, मूवी हॉल और एक छोटा एयरपोर्ट तक था।
सहारा इंडिया रेलवे के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता बन गया था। कंपनी में 11 लाख से ज्यादा कर्मचारी थे। सुब्रत राय बड़े-बड़े नेताओं, फिल्म स्टार्स और बिजनेसमैन के साथ नजर आते थे। उनकी छवि एक ऐसे शख्स की थी, जो गरीबों का मसीहा है और समाज को बेहतर बनाने के लिए काम करता है।

पहली बार इनकम टैक्स की नजर

सहारा का साम्राज्य चमक रहा था, लेकिन 1996 में पहली बार उस पर सवाल उठे। एक इनकम टैक्स ऑफिसर ने सहारा के फाइनेंशियल रिकॉर्ड्स की जांच शुरू की और कंपनी से पूछा कि इतना पैसा कहां से आ रहा है। सुब्रत राय ने जवाब में कुछ बड़े नेताओं के नाम लिए और कहा कि फंड्स उनके जरिए आ रहे हैं।
इसके बाद क्या हुआ? उन नेताओं को डर लगा कि उनका नाम उछलने से कहीं बदनामी न हो जाए। नतीजा? उस इनकम टैक्स ऑफिसर का ही ट्रांसफर कर दिया गया। इस तरह सहारा की पहली मुसीबत टल गई, और कंपनी फिर से पहले की तरह चलने लगी। लेकिन ये सिर्फ शुरुआत थी।

बुरे दिन की शुरुआत: मार्केट सैचुरेशन और SEBI की एंट्री

2000 के दशक तक सहारा का मॉडल अच्छा चल रहा था, लेकिन धीरे-धीरे मार्केट सैचुरेट होने लगा। मतलब, जो लोग सहारा में इनवेस्ट करना चाहते थे, वो लगभग सभी इनवेस्ट कर चुके थे। अब नए इनवेस्टर्स की संख्या कम हो रही थी, जबकि पुराने इनवेस्टर्स अपने पैसे वापस मांगने लगे। इससे सहारा को कैश फ्लो की दिक्कत शुरू हो गई।
इस समस्या से निपटने के लिए सुब्रत राय ने सोचा कि कंपनी का IPO (Initial Public Offering) लाया जाए। यानी, सहारा की दो कंपनियां—सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड—को स्टॉक मार्केट में लिस्ट किया जाए। इसके लिए उन्होंने 30 सितंबर 2009 को SEBI (Securities and Exchange Board of India) में DRHP (Draft Red Herring Prospectus) फाइल किया।
DRHP एक तरह का कंपनी का बायोडाटा होता है, जिसमें उसकी सारी फाइनेंशियल डिटेल्स होती हैं। SEBI ने जब सहारा के दस्तावेज खंगाले, तो उसे कुछ गड़बड़ दिखी। 25 दिसंबर 2009 और 4 जनवरी 2010 को SEBI को दो शिकायतें मिलीं, जिसमें कहा गया कि सहारा गलत तरीके से लोगों से पैसा जुटा रहा है।

सहारा स्कैम: ऑप्शनली कन्वर्टिबल डिबेंचर्स (OCD) का खेल

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SEBI की जांच में पता चला कि सहारा की दोनों कंपनियों ने 2.5 करोड़ इनवेस्टर्स से करीब ₹24,000 करोड़ रुपये जुटाए थे। ये पैसा ऑप्शनली कन्वर्टिबल डिबेंचर्स (OCD) के जरिए लिया गया था।
OCD क्या होता है?
ये एक तरह का लोन होता है, जिसमें इनवेस्टर को एक तय समय बाद दो ऑप्शन मिलते हैं:
अपने पैसे ब्याज समेत वापस ले लो।
उस पैसे से कंपनी के शेयर खरीद लो।
लेकिन OCD इशू करने के नियम सख्त हैं। अगर कंपनी 50 से कम लोगों से पैसा जुटाती है, तो उसे रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (ROC) से परमिशन लेनी पड़ती है। अगर 50 से ज्यादा लोगों से पैसा जुटाना है, तो SEBI की इजाजत जरूरी है।
सहारा ने क्या किया? उन्होंने न तो SEBI से परमिशन ली और न ही नियमों का पालन किया। गैरकानूनी तरीके से OCD के जरिए लाखों लोगों से पैसा जुटाया गया। SEBI ने इसे गंभीर उल्लंघन माना और सहारा को आदेश दिया कि वो सारे इनवेस्टर्स के पैसे 15% ब्याज के साथ लौटाए।

हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक

सहारा ने SEBI के इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया और इलाहाबाद हाई कोर्ट में केस दायर किया। लेकिन हाई कोर्ट ने भी SEBI के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद सहारा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में सहारा से पूछा, “आपने इतना पैसा कहां से जुटाया? इसके सोर्स के सबूत दो।” लेकिन सहारा कोई ठोस जवाब नहीं दे पाया। कोर्ट ने आदेश दिया कि सहारा को 3 महीने में सारे इनवेस्टर्स के ₹24,000 करोड़ रुपये 15% ब्याज के साथ लौटाने होंगे। साथ ही, सभी इनवेस्टर्स की डिटेल्स SEBI को देनी होंगी।
सहारा ने कोर्ट के आदेश का पालन करने का दिखावा किया। उन्होंने 127 ट्रक भरकर कागजात SEBI के ऑफिस पहुंचा दिए, जिसमें इनवेस्टर्स की डिटेल्स होने का दावा था। लेकिन जब SEBI ने इन दस्तावेजों को चेक किया, तो पाया कि ज्यादातर जानकारी अधूरी थी। कई इनवेस्टर्स के नाम, पते और डिटेल्स फर्जी लग रहे थे। इससे सुप्रीम कोर्ट और SEBI को शक हुआ कि कहीं ये मनी लॉन्ड्रिंग का मामला तो नहीं।

सुब्रत राय की गिरफ्तारी और जेल

2014 तक सहारा ने कोर्ट के आदेशों का पूरी तरह पालन नहीं किया। उन्होंने पहली किस्त के तौर पर ₹5,120 करोड़ रुपये जमा किए, लेकिन बाकी पैसे जमा करने में नाकाम रहे। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया और सहारा के बैंक अकाउंट्स और एसेट्स फ्रीज कर दिए।
26 फरवरी 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रत राय को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। 4 मार्च 2014 को उन्हें लखनऊ में गिरफ्तार कर लिया गया और दिल्ली की तिहाड़ जेल भेज दिया गया। ये वो शख्स था, जो कभी बड़े-बड़े नेताओं और सेलेब्रिटीज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलता था, अब सलाखों के पीछे था।
2016 में सुब्रत राय की मां की मृत्यु हुई, जिसके बाद उन्हें पैरोल पर रिहा किया गया। इसके बाद वो जेल से बाहर रहे।

सहारा का पतन, साम्राज्य का अंत

सहारा का साम्राज्य धीरे-धीरे ढहने लगा। SEBI के पास जमा ₹5,120 करोड़ में से सिर्फ ₹138 करोड़ ही इनवेस्टर्स को लौटाए जा सके। कारण? सहारा के पास इनवेस्टर्स की पूरी और सटीक जानकारी ही नहीं थी। कई इनवेस्टर्स के रिकॉर्ड्स गायब थे, और जो थे, वो अधूरे या फर्जी थे।
सहारा का दावा था कि उन्होंने SEBI को ₹22,000 करोड़ रुपये जमा किए, लेकिन SEBI का कहना था कि उनके पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है। इस तरह पूरा मामला सालों तक लटका रहा। सहारा की कई प्रॉपर्टीज और एसेट्स जब्त हो गए। कंपनी की चमक फीकी पड़ गई, और सुब्रत राय की छवि भी धूमिल हो गई।

परिवार का विदेश चले जाना

सुब्रत राय का स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ने लगा। 14 नवंबर 2023 को, 75 साल की उम्र में, मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद सहारा इंडिया परिवार पूरी तरह बिखर गया। उनके परिवार के ज्यादातर सदस्य, जिनमें उनकी पत्नी और बेटे शामिल थे, विदेश चले गए।
ऐसा कहा जाता है कि परिवार ने भारत में बढ़ते कानूनी दबाव और विवादों से बचने के लिए देश छोड़ दिया। सहारा की कई प्रॉपर्टीज और एसेट्स अब भी जब्त हैं, और कंपनी के पास न तो पहले जैसी ताकत बची है और न ही विश्वास।

13 करोड़ इनवेस्टर्स से धोखा ?

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सहारा स्कैम भारत के सबसे बड़े फाइनेंशियल फ्रॉड्स में से एक माना जाता है। करीब 13 करोड़ लोग, जो भारत की 11% आबादी के बराबर है, इस स्कैम का शिकार हुए। ये वो लोग थे, जिन्होंने अपनी मेहनत की कमाई सहारा में लगाई थी, लेकिन उन्हें न तो उनका पैसा मिला और न ही कोई जवाब।
SEBI आज भी इनवेस्टर्स को उनका पैसा लौटाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अधूरी जानकारी और जटिल कानूनी प्रक्रिया की वजह से ये काम रुका हुआ है। सरकार ने भी इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया, जिससे लाखों लोग आज भी अपने पैसे के लिए इंतजार कर रहे हैं।

सहारा से सबक: क्या गलत हुआ?

सहारा की कहानी हमें कई सबक देती है:
ट्रांसपेरेंसी की कमी: सहारा ने अपने फाइनेंशियल ऑपरेशन्स में पारदर्शिता नहीं रखी। फर्जी इनवेस्टर्स और अधूरे रिकॉर्ड्स ने उनकी मुश्किलें बढ़ाईं।
नियमों का उल्लंघन: SEBI और ROC के नियमों को नजरअंदाज करना सहारा के पतन का सबसे बड़ा कारण बना।
अति आत्मविश्वास: सुब्रत राय का बड़बोलापन और नेताओं-सेलेब्रिटीज के साथ रिश्तों पर जरूरत से ज्यादा भरोसा भी उनकी मुसीबत का कारण बना।
लालच का मॉडल: सहारा का बिजनेस मॉडल छोटे इनवेस्टर्स को लुभाने के लिए बनाया गया था, लेकिन ये लंबे समय तक टिकाऊ नहीं था।

सहारा का भविष्य और आपकी राय

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सहारा इंडिया परिवार की कहानी एक सपने की तरह शुरू हुई थी, लेकिन गलत फैसलों और लापरवाही ने इसे एक दुखद अंत तक पहुंचा दिया। सुब्रत राय ने ₹2000 से शुरू करके एक ऐसा साम्राज्य बनाया, जो लाखों लोगों का सहारा बना, लेकिन आखिर में वही लोग बेसहारा हो गए।
आज सवाल ये है कि क्या सरकार और SEBI उन 13 करोड़ इनवेस्टर्स को उनका हक दिला पाएंगे? या फिर ये मामला हमेशा के लिए लटका रहेगा? आप इस स्कैम के बारे में क्या सोचते हैं? क्या ये सिर्फ सहारा की गलती थी, या फिर सिस्टम की नाकामी भी इसमें शामिल है?

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