Rape after Death – मरने के बाद लड़की के साथ रेप को क्राइम क्यों नहीं मानते, सुप्रीम कोर्ट ने ‘सज़ा’ देने से क्यों किया इनकार ?
Posted by Nirmal | 6 February, 2025

Necrophilia – अगर किसी लड़की या महिला की किसी कारण से मौत हो गई है और उसके मृत देह के साथ कोई भी बीमार मानसिकता का आदमी रेप करना है तो इसे अपराध नहीं माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट और कर्नाटक हाईकोर्ट ( Karnataka High court ) ने ऐसे ही मामले में एक आरोपी को सज़ा देने से इनकार कर दिया है। हैरान करने वाला ये केस पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। क्या इस केस में कोर्ट से कोई भूल हुई है, आइये इस मुद्दे पर पड़ताल करते हैं। ये लेख आप यंगिस्तान डॉट को डॉट इन पर पढ़ रहे हैं। युवाओं की समस्याओं, उनकी रुचियों और कैरियर से जुड़ी लेटेस्ट जानकारी के लिए पेज को फॉलो करना और चैनल को सबस्क्राइब करना बिल्कुल न भूलें।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच एक ऐसे मामले पर फैसला कर रही थी, जो एक मानसिक बीमारी से उपजा है। क्या महिला, बच्ची या औरत के मृत शरीर के साथ रेप माना जा सकता है ? कर्नाटक हाईकोर्ट इस पर फैसले दे चुका था। अब सुप्रीम कोर्ट को उस प फैसला सुनाना था।
कर्नाटक सरकार की ओर से अडिशनल एडवोकेट जनरल अमन पंवार ने तर्क दिया कि IPC की धारा 375(c) में ‘शरीर’ शब्द को मृत शरीर भी शामिल माना जाना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि ‘रेप’ की कानूनी परिभाषा के तहत यदि कोई महिला अपनी रजामंदी नहीं दे सकती है तो इसे बलात्कार माना जाएगा। इसी तर्क के आधार पर मृत शरीर भी सहमति नहीं दे सकता, इसलिए यह अपराध बलात्कार के दर्जे में आना चाहिए। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को मानने से इनकार कर दिया और कहा कि भारतीय दंड संहिता के तहत नेक्रोफिलिया को क्राइम नहीं माना गया है। सामाजिक तौर पर ये ग़लत है और एक मृत देह की गरिमा का अपमान है, लेकिन कोई कानून न होने के कारण वह हाईकोर्ट के आदेश में दखल देने का इच्छुक नहीं है।
इससे पहले कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी साफ किया था कि मृत शरीर के साथ यौन संबंध को बलात्कार नहीं माना जा सकता, क्योंकि IPC की धारा 375 और 377 केवल जीवित मनुष्यों पर लागू होती है। धारा 375 और 377 की गहराई से पड़ताल करने पर यह साफ हो जाता है कि मृत शरीर को ‘व्यक्ति’ या ‘मानव’ नहीं माना जा सकता। इसलिए, इन धाराओं के तहत कोई अपराध नहीं बनता और आरोपी को IPC की धारा 376 के तहत सजा नहीं दी जा सकती। हाईकोर्ट ने यह भी स्वीकार किया कि नेक्रोफिलिया एक गंभीर समस्या है और संसद को इसे अपराध घोषित करने के लिए कानून बनाना चाहिए। एक मामले में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने भी दिसंबर में कहा था कि किसी मृत महिला या बच्ची के साथ यौन अपराध किया जाता है तो उसे IPC की धारा 375 ( rape) या POCSO अधिनियम के तहत अपराध नहीं माना जा सकता।
मृत देह से ‘यौन दुर्व्यहार’ क्यों

भारत में नेक्रोफिलिया (necrophilia ) के कई मामले सामने आ चुके हैं। उदाहरण के लिए, 2015 में कर्नाटक के तुमकुरु जिले में एक महिला की हत्या के बाद उसके शव के साथ यौन संबंध बनाए गए। इसी तरह, 2020 में लॉकडाउन के दौरान एक दुकानदार ने महिला की हत्या करने के बाद उसके शव के साथ दुर्व्यवहार किया। दरअसल मृत देह के सात शारीरिक संबंध बनाना एक मनो-यौन विकार (psychosexual disorder) है। अंग्रेजी में इसे नेक्रोफिलिया कहते हैं। इसमें बीमार मानसिकता के लोगों को मृत शरीर के प्रति यौन आकर्षण होता है। यह विकार DSM-IV (मानसिक विकारों का नैदानिक और सांख्यिकीय मैनुअल) में ‘पैराफिलिया’ के तहत आता है। नेक्रोफिलिया के मामले अस्पतालों और मुर्दाघरों में अक्सर सामने आते हैं, जहां कर्मचारी युवतियों के शवों के साथ यौन दुर्व्यवहार करते हैं। वैसे तो एक शव की भी अपनी गरिमा होती है और ऐसे मुद्दे सामने आते हैं तो इन पर हंगामा भी खूब मचता है, लेकिन अस्पतालों और मुर्दाघरों में ऐसे मामले छुप जाते हैं। कई बार कब्रिस्तान के आसपास भी ऐसे केस खूब देखे जाते हैं। हाल ही में कर्नाटक में एक ऐसा मुद्दा सामने आया था, जिस पर पूरे देश में खूब हंगामा हुआ।
हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट ऐसे ही एक मामले में फैसला सुनाया कि मृत शरीर के साथ यौन संबंध को बलात्कार नहीं माना जा सकता, क्योंकि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 और 377 केवल जीवित व्यक्तियों पर लागू होती हैं। लोगों को लगा कि शायद हाईकोर्ट से कोई गड़बड़ी हो गई होगी। लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने भी यही फैसला सुनाया तो कानून की खामी पर नज़र गई। यह फैसला एक बार फिर इस कानूनी खामी को उजागर करता है कि भारत में नेक्रोफिलिया को अपराध नहीं माना जाता है।
भारतीय कानून में नेक्रोफिलिया

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 और 377 केवल जीवित व्यक्तियों पर लागू होती हैं। धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है, जबकि धारा 377 अप्राकृतिक यौन संबंधों से संबंधित है। इन धाराओं के तहत मृत शरीर को ‘व्यक्ति‘ या ‘मानव‘ नहीं माना जाता, इसलिए शव के साथ यौन संबंध को अपराध नहीं माना जा सकता। अब नैतिक तौर पर भले ये गलत है, लेकिन कानून में कोई धारा न होने के कारण कोर्ट भी इसको अपराध न मानने को मजबूर हो जाता है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी सजा न दे पाने के लिए मजबूरी जताई और सुप्रीम कोर्ट ने भी उसके फैसले को ही बरकरार रखा।
बाकी देश में क्या होता है ?

भारत के विपरीत, कई देशों में नेक्रोफिलिया (necrophilia ) को अपराध माना जाता है। उदाहरण के लिए, यूनाइटेड किंगडम में यौन अपराध अधिनियम, 2003 की धारा 70 के तहत शव के साथ यौन संबंध बनाने पर 6 महीने से 2 साल तक की सजा का प्रावधान है। कनाडा में भी ऐसे अपराधों के लिए 5 साल तक की सजा हो सकती है। भारतीय कानून में नेक्रोफिलिया को अपराध नहीं माना जाना एक बड़ी खामी है। कर्नाटक हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मुद्दे पर संसद से कानून बनाने की अपील की है। IPC की धारा 377 में संशोधन करके मृत शरीर के साथ यौन संबंध को अपराध घोषित किया जा सकता है।
गरिमा का अधिकार

मृत व्यक्ति की गरिमा और अधिकारों की रक्षा करना समाज की जिम्मेदारी है। नेक्रोफिलिया जैसे अपराध न केवल पीड़ित के परिवार के लिए दर्दनाक होते हैं, बल्कि समाज के नैतिक मूल्यों को भी ठेस पहुंचाते हैं। हालांकि अधिकांश मामलों में इसलिए, ऐसे अपराधों को रोकने के लिए कानूनी सुधार आवश्यक हैं।
भारत ( India ) में नेक्रोफिलिया ( necrophilia) को अपराध नहीं माना जाना एक गंभीर कानूनी खामी है। कर्नाटक हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों ने इस मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है। अब समय आ गया है कि संसद IPC में संशोधन करके नेक्रोफिलिया को अपराध घोषित करे और मृत व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करने के लिए कड़े कानून बनाए। इससे न केवल ऐसे अपराधों पर अंकुश लगेगा, बल्कि समाज के नैतिक मूल्यों को भी मजबूती मिलेगी। यंगिस्तान इस पर फौरन कानून बनाने की मांग करता है। हमको लगता है कि भारत में इस मुद्दे पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है ताकि मृत व्यक्ति की गरिमा और अधिकारों की रक्षा की जा सके। आपके इसके बारे में क्या कहना है, अपनी राय कॉमेन्ट बॉक्स में ज़रूर रखें।

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