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Nadaaniyan movie 2025 – कैसी है सैफ अली ख़ान के बेटे इब्राहिम की डेब्यू फिल्म, ‘नादानियां’ बनाने में सबने इतनी ‘नादानी’ क्यों दिखाई ?

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Posted by Admin |08 March, 2025

nadaniyan-3 Nadaaniyan movie 2025 – कैसी है सैफ अली ख़ान के बेटे इब्राहिम की डेब्यू फिल्म, ‘नादानियां’ बनाने में सबने इतनी ‘नादानी’ क्यों दिखाई ?

Netflix Movie Nadaaniyan Review- नेटफ्लिक्स पर इन दिनों स्टार किड्स ( star kids) की फिल्मों की धूम है। पहले शाहरुख खान ( shahrukh Khan ) की बेटी सुहाना खान ( suhana khan) , बोनी कपूर की बेटी खुशी कपूर ( Khushi Kapoor) और अमिताभ बच्चन ( Amitabh Bachchan) के नाती अगस्त्य नंदा ( Agustya Nanda) की फिल्म आर्चीज ( Arches) आई। फिर आमिर खान ( Amir Khan) के बेटे जुनैद खान ( Zunaid Khan) की महाराज ( Mahraj) रिलीज हुई। और अब सैफ अली खान ( Saif Ali Khan) के बेटे इब्राहिम अली खान ( Ibrahim Ali Khan) और श्रीदेवी की बेटी खुशी कपूर की फिल्म नादानियां (Nadaaniyan) 7 मार्च 2025 को नेटफ्लिक्स पर आ गई है। ये फिल्म जेन-जेड ( zen-z) यानी आज के युवाओं की जिंदगी को दिखाती है, जिसमें प्यार, दोस्ती, सोशल मीडिया और थोड़ी-सी नादानियां शामिल हैं। आज यंगिस्तान ( youngistan.co.in) आपको इस फिल्म की अच्छी, बुरी बातें, बताएगा। साथ ही फिल्म की कहानी कैसी है, डायरेक्शन और एक्टिंग में क्या दम है, और स्टार किड्स की एक्टिंग की तुलना भी करेंगे। साथ ही, ये सवाल भी उठाएंगे कि आखिर ऐसी फिल्में बनती कैसे हैं और क्या इनके स्टार मम्मी-पापा इन्हें देखते नहीं हैं?

‘नादानियां’ को क्यों देखें?

नादानियां एक हल्की-फुल्की फिल्म है, जो आपको दो घंटे के लिए एक ऐसी दुनिया में ले जाती है जहां प्यार, मस्ती और थोड़ा-सा ड्रामा है। अगर आपको रोमांटिक कॉमेडी पसंद है, जिसमें आज के जमाने की बातें हों—जैसे सोशल मीडिया का दबाव, फेक दोस्ती और प्यार में पड़ने की नादानियां ( Nadaaniyan movie) —तो ये फिल्म आपके लिए है। इब्राहिम अली खान ( Ibrahim Ali Khan) और खुशी कपूर ( Khushi Kapoor) की जोड़ी नई है, और उनकी ताजगी आपको स्क्रीन पर बांधे रखती है। ऊपर से फिल्म में सुनील शेट्टी ( suneel Shetty) , दीया मिर्जा ( Deeya Mirza) , महिमा चौधरी ( Mahima Choudhary) और जुगल हंसराज ( Jugal Hansraj ) जैसे सितारे भी हैं, जो पुरानी यादें ताजा करते हैं। गाने ( songs) भी ठीक-ठाक हैं, जो मूड को हल्का रखते हैं। तो अगर आप वीकेंड ( weekend) पर कुछ मजेदार और आसान सा देखना चाहते हैं, तो नादानियां ट्राई कर सकते हैं।
लेकिन हां, अगर आप गहरी कहानी या कुछ नया ढूंढ रहे हैं, तो शायद ये फिल्म आपको थोड़ी खाली-खाली सी लगे। फिर भी, जेन-जेड( Zen-Z ) की दुनिया को करीब से देखने का मौका मिलेगा, जो आजकल की जिंदगी से कनेक्ट करती है।

फिल्म की खास बातें

नादानियां में कुछ चीजें ऐसी हैं जो इसे खास बनाती हैं, और कुछ ऐसी जो इसे थोड़ा कमजोर करती हैं। चलिए पहले अच्छी बातें देखते हैं:
नई जोड़ी: इब्राहिम और खुशी पहली बार साथ आए हैं। दोनों की केमिस्ट्री में एक फ्रेशनेस है। इब्राहिम का कॉन्फिडेंस और खुशी का स्टाइल फिल्म को देखने लायक बनाता है।
जेन-जेड का टच: फिल्म में सोशल मीडिया, फेक बॉयफ्रेंड, और आज के युवाओं की लाइफस्टाइल को अच्छे से दिखाया गया है। ये आज के टीनएजर्स और यंगस्टर्स से कनेक्ट करेगी।
पुराने सितारे: सुनील शेट्टी और दीया मिर्जा जैसे सितारों को देखना मजेदार है। इनके छोटे-छोटे रोल फिल्म में गर्मजोशी लाते हैं।
गाने: फिल्म का म्यूजिक ठीक है। “गलतफहमी” और “इश्क में” जैसे गाने मूड को सेट करते हैं और सुनने में अच्छे लगते हैं।
अब कुछ कमियां भी हैं:
कहानी में दम नहीं:
कहानी बहुत सीधी-सादी है। कुछ नया नहीं है, बस वही पुराना प्यार, ब्रेकअप और फिर मिलन।
फेक वाइब: फिल्म की दुनिया थोड़ी बनावटी लगती है। असल जिंदगी से इसका ज्यादा लेना-देना नहीं है।
एक्टिंग में कच्चापन- इब्राहिम और खुशी की एक्टिंग अभी कच्ची है। इनके एक्सप्रेशंस और डायलॉग डिलीवरी में कमी दिखती है।

कहानी क्या है?

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नादानियां की कहानी साउथ दिल्ली की रईस लड़की पिया जयसिंह (खुशी कपूर) और नोएडा के मिडिल क्लास लड़के अर्जुन मेहता (इब्राहिम अली खान) की है। पिया एक सोशल मीडिया स्टार है, जिसकी जिंदगी बाहर से तो चमकदार दिखती है, लेकिन अंदर से वो अपनी वैल्यू ढूंढ रही है। उसे अपने दोस्तों से हर बार अप्रूवल चाहिए, और वो अपने लिए एक परफेक्ट लव स्टोरी चाहती है। दूसरी तरफ, अर्जुन एक स्मार्ट और मेहनती लड़का है, जो वकील बनना चाहता है। उसे पिया की चमक-दमक से कोई मतलब नहीं, वो अपनी दुनिया में खुश है।
फिल्म तब शुरू होती है जब पिया को अपने दोस्तों के सामने शो-ऑफ करने के लिए एक बॉयफ्रेंड चाहिए। वो अर्जुन को 25 हजार रुपये हफ्ते के हिसाब से किराए का बॉयफ्रेंड ( Rented Boyfriend) बनाती है। पहले तो ये सब नकली है, लेकिन धीरे-धीरे दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो जाता है। फिर कुछ गलतफहमियां होती हैं, थोड़ा ड्रामा होता है, और आखिर में दोनों फिर मिल जाते हैं। बस यही कहानी है। इसमें पिया के मम्मी-पापा (सुनील शेट्टी और महिमा चौधरी) और अर्जुन के मम्मी-पापा (जुगल हंसराज और दीया मिर्जा) का भी थोड़ा रोल है, जो फिल्म को थोड़ा सपोर्ट देता है।
कहानी में जेन-जेड का फील तो है—जैसे सोशल मीडिया का दबाव, फेक रिश्ते, और प्यार में कन्फ्यूजन—लेकिन ये बहुत गहरी नहीं है। ऐसा लगता है कि करण जौहर ने एक बार फिर वही पुराना फॉर्मूला लिया और उसे नए ढंग से पेश कर दिया।

डायरेक्शन कैसा है?

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शौना गौतम ने नादानियां से डायरेक्शन में डेब्यू किया है। ये उनकी पहली फिल्म है, तो कुछ अच्छा है और कुछ कमजोर भी। अच्छी बात ये है कि उन्होंने जेन-जेड की जिंदगी को ठीक से पकड़ा है। सोशल मीडिया का दबाव, दोस्ती का दिखावा, और प्यार की उलझन को वो अच्छे से दिखाती हैं। फिल्म का लुक भी चमकदार है—सिनेमैटोग्राफी अच्छी है, लोकेशन शानदार हैं, और म्यूजिक फिल्म को सपोर्ट करता है।
लेकिन कमी ये है कि कहानी में गहराई नहीं है। ऐसा लगता है कि शौना ने कोशिश कम की और करण जौहर के फॉर्मूले पर ही भरोसा किया। कुछ सीन बहुत बनावटी लगते हैं, जैसे अमीर स्कूल में फ्री आईफोन बांटना या मिडिल क्लास मां का ऊटपटांग सवाल पूछना। डायरेक्शन में मेहनत की कमी साफ दिखती है। अगर कहानी को थोड़ा और मजबूत किया जाता, तो फिल्म ज्यादा असर छोड़ती|

एक्टिंग कैसी है?

अब बात करते हैं एक्टिंग की, क्योंकि ये फिल्म स्टार किड्स पर टिकी है।
इब्राहिम अली खान: सैफ अली खान के बेटे इब्राहिम ने अपनी पहली फिल्म में ठीक-ठाक शुरुआत की है। वो स्क्रीन पर अच्छे लगते हैं—उनमें एक नैचुरल चार्म है। उनका कॉन्फिडेंस और डांस मूव्स बढ़िया हैं। लेकिन एक्टिंग में अभी बहुत काम करना है। उनके एक्सप्रेशंस कमजोर हैं, और डायलॉग डिलीवरी में दम नहीं है। मिडिल क्लास लड़के का रोल उनके लिए थोड़ा मुश्किल रहा, क्योंकि उनकी शक्ल और अंदाज नवाबी ज्यादा लगता है।
खुशी कपूर: खुशी की ये तीसरी फिल्म है (आर्चीज और लवयापा के बाद)। वो स्टाइलिश और क्यूट लगती हैं, लेकिन एक्टिंग अभी कच्ची है। उनकी डायलॉग डिलीवरी फीकी है, और एक्सप्रेशंस में जान नहीं है। आर्चीज से वो थोड़ी बेहतर हुई हैं, लेकिन अभी उन्हें बहुत मेहनत चाहिए। पिया का किरदार वो ठीक निभाती हैं, पर गहराई नहीं ला पातीं।
सहायक कलाकार: सुनील शेट्टी को देखना मजेदार है—वो पिया के पापा के रोल में फिट हैं। दीया मिर्जा अर्जुन की मां के किरदार में प्यारी लगती हैं। महिमा चौधरी और जुगल हंसराज का रोल छोटा है, लेकिन वो अपना काम अच्छे से करते हैं। नए चेहरे अपूर्व मुखीजा और अगस्त्य शाह भी ठीक हैं—इनका जेन-जेड टच फिल्म में फिट बैठता है।

स्टार किड्स की एक्टिंग की तुलना

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अब स्टार किड्स की एक्टिंग को आपस में तौलते हैं।
सुहाना खान (आर्चीज): सुहाना की डेब्यू फिल्म में वो ठीक लगी थीं, लेकिन उनकी एक्टिंग में आत्मविश्वास की कमी थी। खुशी से उनकी तुलना करें, तो दोनों अभी कच्ची हैं, पर सुहाना का स्क्रीन प्रजेंस थोड़ा बेहतर था।
अगस्त्य नंदा (आर्चीज): अगस्त्य ने आर्चीज में बढ़िया काम किया था। उनकी डिलीवरी और एक्सप्रेशंस इब्राहिम से बेहतर थे। इब्राहिम में चार्म है, लेकिन अगस्त्य की एक्टिंग ज्यादा पॉलिश्ड थी।
जुनैद खान (महाराज): जुनैद ने महाराज में गजब की एक्टिंग की। उनकी परफॉर्मेंस इब्राहिम और खुशी से कहीं आगे थी। वो नैचुरल और गहरे लगे, जबकि नादानियां के दोनों स्टार्स अभी सीख रहे हैं।
खुशी कपूर:
आर्चीज और लवयापा के बाद नादानियां में वो थोड़ी बेहतर हुई हैं, लेकिन अभी भी सुहाना और जुनैद से पीछे हैं। इब्राहिम से उनकी केमिस्ट्री ठीक है, पर अकेले वो कमजोर पड़ती हैं।
कुल मिलाकर, जुनैद सबसे आगे हैं, अगस्त्य ठीक-ठाक, और सुहाना-खुशी-इब्राहिम अभी मेहनत की राह पर हैं।

एक्टिंग में स्टार किड्स की टक्कर

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इब्राहिम अली खान (अर्जुन): सैफ के बेटे में कूलनेस कूट-कूटकर भरी है। डांस और स्टाइल में वह बाप को टक्कर देते हैं, लेकिन एक्टिंग अभी कच्ची है। गुस्से या दुख के सीन में उनके चेहरे पर एक ही एक्सप्रेशन रहता है।
खुशी कपूर (पिया): “आर्चीज” और “लवयापा” के बाद यह उनकी तीसरी फिल्म है। वे स्टाइलिश ज़रूर हैं, पर डायलॉग डिलीवरी फ्लैट है। ख़ासकर इमोशनल सीन में आंखों में नमी की कमी खलती है।
 सहायक कलाकार: सुनील शेट्टी के डायलॉग “बेटा, प्यार दिल से होता है, फोन से नहीं” फिल्म की हाइलाइट हैं। दीया मिर्ज़ा ने मिडिल-क्लास माँ का रोल बखूबी निभाया।

तुलना:

· जुनैद खान vs इब्राहिम: “महाराज” में जुनैद की परफॉर्मेंस पक्की थी, जबकि इब्राहिम को अभी सीखना बाकी है।
· सुहाना vs खुशी: दोनों में नैचुरल एक्टिंग की कमी है, पर सुहाना का स्क्रीन प्रेजेंस बेहतर है।
· अगस्त्य नंदा: “आर्चीज” में उनकी टाइमिंग और भावनाएं इब्राहिम से ज़्यादा पॉलिश्ड थीं।

स्टार किड्स की फिल्में कौन चुनता है?

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अब बड़ा सवाल ये है कि इन स्टार किड्स की फिल्में बनती कैसे हैं? क्या उनके स्टार मम्मी-पापा इन्हें देखते नहीं? आर्चीज फ्लॉप रही, लवयापा भी कुछ खास नहीं कर पाई, और अब नादानियां भी वही ढर्रा लिए चल रही है। ऐसा लगता है कि करण जौहर जैसे प्रोड्यूसर्स को स्टार किड्स को लॉन्च करने की जल्दी है, लेकिन कहानी और डायरेक्शन पर ध्यान नहीं देते। शायद स्टार पेरेंट्स भी बस अपने बच्चों को स्क्रीन पर देखकर खुश हो जाते हैं, और क्वालिटी की परवाह नहीं करते। बॉलीवुड को ऐसी नादानी से बाहर निकलना होगा, वरना दर्शक थक जाएंगे।
नादानियां एक हल्की-फुल्की फिल्म है, जो जेन-जेड की दुनिया को दिखाती है। इब्राहिम और खुशी की जोड़ी नई है, और उनकी ताजगी फिल्म का प्लस पॉइंट है। लेकिन कहानी कमजोर है, डायरेक्शन में मेहनत की कमी है, और एक्टिंग अभी कच्ची है। इसे देखें तो बस टाइमपास के लिए, गहरी उम्मीदें मत रखिए। स्टार किड्स को मौका मिलना ठीक है, पर अब वक्त है कि बॉलीवुड कुछ नया और दमदार लाए। इस फिल्म को 3 स्टार दे सकते हैं—न ज्यादा, न कम।

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