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Mukhtar Ansari Death -माफिया के आतंक से तब योगी संसद में रोये थे, आज मुख्तार का खानदान

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Posted by Admin | 29 March, 2024

WhatsApp-Image-2024-03-29-at-10.23.01-AM-1-1024x684 Mukhtar Ansari Death -माफिया के आतंक से तब योगी संसद में रोये थे, आज मुख्तार का खानदान

साल 2008 में यूपी के मऊ दंगों के दौरान खुली जीप में हथियार लहराते माफिया टर्न पॉलिटिशियन मुख्तार अंसारी ( Mukhtar Ansari) और उसके बाद तब के सांसद और आज राज्य के सीएम योगी आदित्य नाथ के काफिले पर हमला हुआ था। यूपी में तब अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह की सरकार थी और उनको निर्दलीय विधायक के तौर पर सपोर्ट था, मुख्तार अंसारी का। सांसद योगी को तब संसद में अपनी सुरक्षा के लिए फूट फूट कर रोना पड़ गया था। उन्होंने संसद से अपनी सुरक्षा की गुहार लगाई थी।

मिट्टी में मिला मुख्तार

WhatsApp-Image-2024-03-29-at-10.23.02-AM-1024x691 Mukhtar Ansari Death -माफिया के आतंक से तब योगी संसद में रोये थे, आज मुख्तार का खानदान

वक्त का पहिया घूमा और आज यूपी की बागडोर योगी आदित्यनाथ के हाथ में है। दो बार उम्रकैद की सज़ा पा चुका मुख्तार अंसारी आज मिट्टी में मिलाए जाने की राह पर है। यूपी के गाजीपुर में आज बेचैनी के बीच मातम पसरा है.. यूपी में पांच बार के विधायक रहे बाहुबली मुख्तार अंसारी का गांव मोहम्मदाबाद उसकी मौत पर आँसू बहा रहा है, लेकिन इसी शहर में बीजेपी के पूर्व विधायक कृष्णा नंद रॉय के समर्थकों को लगता है कि कुदरत ने आज इंसाफ कर दिया। बाँदा जेल में उम्र कैद की सज़ा काट रहे माफिया टर्न पॉलिटिशियन मुख्तार अंसारी को भले हार्ट अटैक आया हो, लेकिन बीस साल पहले बीजेपी के उभरते नेता कृष्णा नंद रॉय को दिन दहाड़े गोलियों से छलनी कर दिया गया था। उनके काफिले पर अंधा धुंध फायरिंग करके पूर्वांचल को खौफ से भर दिया गया था।
याद कीजिए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ( Yogi Adityanath)
ने जब विधान सभा में ऐलान किया था – ‘माफियाओं को मिट्टी में मिला देंगे’ तब भी उनको कृष्णा नंद रॉय ज़रूर याद आए होंगे।

मुख्तार की मौत पर सवाल

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सजायाफ्ता माफिया मुख्तार की मौत पर ढेरों शक, सुबहा और सवाल हैं और इसी के साथ पूर्वांचल के चुनाव में बड़ा मुद्दा भी बन जाएगा, आखिर एक वोट बैंक का सबब भी है। इसीलिए प्रशासन अलर्ट है। गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़ पुलिस पुलिस प्रशासन को तनाव फैलने की आशंका भी है। सोशल मीडिया में अफवाह, भड़काऊ, या आपत्तिजनक पोस्ट पर कार्यवाई के निर्देश दिए गए हैं. मऊ, गाजीपुर के साथ ही पूरे पूर्वांचल में सुरक्षा बढ़ाई गई है।
दरअसल उत्तर प्रदेश की बांदा जेल में बंद माफिया मुख्तार अंसारी की 29 मार्च की रात हार्ट अटक से मौत हो गई थी। मुख्तार की मौत की खबर मिलने के बाद बांदा मेडिकल कॉलेज के बाहर बड़ी संख्या में पैरा मिलिट्री फोर्स की तैनाती की गई। डीजीपी मुख्यालय ने पूरे राज्य में हाई अलर्ट घोषित कर दिया।
मुख्तार अंसारी पर 65 से ज्यादा मुकदमें दर्ज थे। 21 सितंबर 2002 को पहली बार सजा हुई थी। 2 केस में उम्र कैद की सजा हुई थी। पिछले 17 महीने में उसको 8 बार सजा हुई थी और योगी सरकार न होती तो इंसाफ हो पाना ही मुश्किल था।
बाहुबली मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफज़ाल अंसारी गाजीपुर के सांसद हैं तो बेटा और भतीजा विधायक हैं। तीनों भाइयों के बीच करीब चार दशक से सियासत फल फूल रही है। परिवार अब जाँच की मांग कर रहा है।

मुख्तार का अतीत

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63 साल का माफिया टर्न पॉलिटिशियन मुख्तार अंसारी, गाजीपुर से सांसद अफजाल अंसारी का छोटा भाई था। 2019 में बीएसपी के टिकट पर सांसद बने अफजाल इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर गाजीपुर से फिर चुनाव मैदान में हैं। कुछ दिन पहले मुख्तार ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान अदालत में आरोप लगाया था कि जेल में उसकी हत्या की साज़िश रची जा रही है। उसे खाने में धीमा जहर दिया जा रहा है, जिससे उसकी तबीयत बिगड़ रही है। मामले में एमपी एमएलए कोर्ट ( MP- MLA court) ने जेल प्रशासन से रिपोर्ट भी मांगी थी। जाहिर इन आरोपों के बाद शक गहरा गया। अब जब माफिया की मौत हो चुकी है तो जाँच करके पता लगाना ज़रूरी है कि मुख्तार की मौत की असल वजह कुदरती है या कोई साज़िश।
मुख्तार अंसारी पहले पंजाब की रोपड़ जेल में आराम से दिन काट रहा था, लेकिन यू पी में योगी सरकार ने आते ही उसकी फाइल खोल दी गई। मुख्तार को यूपी वापस लाने के लिए योगी सरकार ( Yogi Goverment) सुप्रीम कोर्ट तक गयी, जहां पंजाब पुलिस ( Punjab Police) की तमाम दलीलों के बावजूद अदालत ने मुख्तार को यूपी वापस भेजने का आदेश दे दिया, जिसके बाद 6 अप्रैल 2021 को उसे रोपड़ जेल से एंबुलेंस द्वारा कड़ी सुरक्षा में बांदा जेल लाया गया था। जेल में उसे तन्हाई बैरक में सीसीटीवी की निगरानी में रखा गया। सख्ती का आलम ये था कि उसकी ड्यूटी पर तैनात किसी जेल कर्मी ने उसकी खातिर दारी करने की कोशिश की तो, फौरन उसका ट्रांसफर हो जाता। इसीलिए जेलकर्मियों को भी लगातार बदला जा रहा था। ज़ाहिर है
रोपड़ जेल से यूपी आने के बाद माफिया मुख्तार अंसारी पर कानून का शिकंजा कसता चला गया। उसे डेढ़ साल के भीतर आठ बार अलग-अलग अदालतों ने सजा सुनाई, जिससे दो बार आजीवन कारावास की सजा भी शामिल थी। इससे उसका जिंदा जेल से बाहर आना नामुमकिन हो गया था। मुख्तार के परिजन लगातार जेल में उसकी हत्या करने की साजिश रचने का आरोप लगाते रहे। जब प्रयाग राज में माफिया डॉन अतीक अंसारी को पुलिस कस्टडी में गोली मारी गई, तब से मुख्तार को जेल में भी बुरे सपने आते थे। अपने अतीत को याद करके वो काँप जाया करता। तब से लगातार परिवार वाले उसकी हत्त्या की साज़िश का आरोप लगाते आ रहे हैं। अब जब उसकी लोक सभा चुनावों के बीच वाकई में मौत हो गई है, तो ज़ाहिर है, सियासत तो होगी ही। आरोप भी जमकर लग रहे हैं, जाँच भी होगी।
पूर्वांचल में जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह रहे मुख्तार अंसारी की करीब दो दशक तक सियासत में भी गहरी दखल रही। वह कई सीटों पर न सिर्फ उम्मीदवार तय करता था बल्कि हराने और जिताने में भी कामयाब रहा। उसके सियासी कद का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि वह खुद विधायक बनने के साथ ही कई दलों के लिए भी चुनाव जिताने का जरिया बना रहा। अपने खानदान को खूब आगे बढ़ाया।
इसके साथ ही उसने आसपास के गरीबों के बीच रॉबिनहुड वाली छवि भी बना रखी थी।

बड़े खानदान वाला माफिया

WhatsApp-Image-2024-03-29-at-10.43.56-AM-1024x1024 Mukhtar Ansari Death -माफिया के आतंक से तब योगी संसद में रोये थे, आज मुख्तार का खानदान

मुख्तार अंसारी के दादा स्वतंत्रता सेनानी थे, जो कांग्रेस के बड़े नेता थे और तब गाँधी जी के साथ आज़ादी की लडाई में आगे रहे। उनके पिता भी बेहद शरीफ और सम्मानित नेता रहे। लेकिन तीन जून 1963 को मऊ में जन्म लेने वाले मुख्तार अंसारी ने युवावस्था में ही जरायम की दुनिया में कदम रख दिया था। हत्या, दंगा, गैंगवार सहित हर तरह के आपराधिक रिकार्ड कायम करने के बाद मुख्तार ने 1995 में सियासी मैदान में कदम रखा। उस वक्त जनता दल और कम्युनिस्ट पार्टी का गठबंधन था। वह गाजीपुर सदर विधानसभा सीट से कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरा, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद वह बसपा में शामिल हो गया। साल 1996 में बसपा के टिकट पर मऊ से पहली बार विधायक बना। इसके बाद उसने पाला बदला और 2002 और 2007 में निर्दलीय चुनाव लड़ा और सदन में पहुंचने में सफल रहा। इसके बाद अपने भाई अफजाल अंसारी के साथ मिलकर कौमी एकता दल का गठन किया। साल 2012 के चुनाव में उसने चौथी बार कौमी एकता दल के टिकट पर जीत हासिल की। चुनाव से ठीक पहले वर्ष 2017 में वह फिर बसपा में पहुंचा और मऊ ( Mau) से पांचवीं बार विधायक बनने में कामयाब रहा।
मुख्तार अंसारी ने मऊ से दोबारा निर्दल विधायक बनने के बाद सियासी पकड़ बढ़ाई। वह कई दलों में अपने लोगों को टिकट दिलाने में कामयाब रहा। इसी बीच पूर्वांचल में एक के बाद एक गैंगवार हुए। माफियाओं की सियासी इंट्री बढ़ी। नतीजा यह रहा कि वह सिर्फ टिकट दिलाने तक ही नहीं बल्कि जिताने में भी भूमिका निभाने लगा।
2002 के बाद उसने मऊ, गाजीपुर, आजमगढ़, चंदौली, वाराणसी और जौनपुर तक अपने सियासी कद का विस्तार किया। कौमी एकता दल का गठन करने के बाद वह इन जिलों में संगठन का हवाला देकर जनसभाएं करने लगा। यही वजह थी कि उसकी धमक पूर्वांचल के कई जिलों में हो गई।
मुख्तार अंसारी का इतिहास हर चुनाव में अलग-अलग राजनीतिक दलों या फिर निर्दलीय चुनाव लड़ने का रहा है। वह सियासी हवा का रुख भांपकर दल बदल लेता था।
बाहुबली मुख्तार अंसारी के सपा से रिश्ते बनते बिगड़ते रहे। 2017 में बसपा में जाने से पहले उसने अपनी पार्टी का सपा में विलय का एलान किया, लेकिन उसी वक्त अखिलेश यादव ने विरोध कर दिया। नतीजा रहा कि वह सपा छोड़ बसपा में गया और विधायक बनने में कामयाब रहा।
बाहुबली मुख्तार पांच बार विधायक ही नहीं रहा बल्कि लोकसभा में जाने की भी कोशिश की। वह 2009 में बसपा के टिकट पर वाराणसी से मैदान में उतरा, लेकिन उसे तब हार का सामना करना पड़ा। उस वक्त वाराणसी से भाजपा के उम्मीदवार मुरली मनोहर जोशी थे। उन्होंने 17 हजार वोट से मुख्तार को हराया था। आज मुख्तार की मौत के बाद पूर्वांचल में दहशत थोड़ी और घटेगी, लेकिन परिवार को भी इंसाफ ज़रूर मिलना चाहिए।

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