Education in US Universities- भारतीय स्टूडेन्ट्स का अमेरिका में पढ़ने का सपना कैसे हुआ मुश्किल, सबको ‘बर्बाद’ क्यों कर रहे हैं डोनाल्ड ट्रम्प ?
Posted by Admin | 8 june 2025

Indian Students- अगर आप स्टूडेन्ट हैं और अमेरिका ( United States ) जाकर आगे की पढ़ाई ( Education) करना चाहते हैं तो फिर आपका ये सपना मुसीबत में है। लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी आपको अब पहले जैसी सुविधाएं नहीं मिलने वाली हैं। इसका कारण है अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ( Donald Trump) की नई पॉलिसीज। दरअसल अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की दूसरी पारी शुरू होते ही स्टूडेंट वीजा ( student visa) पर सख्ती बढ़ गई है। 27 मई को ट्रंप प्रशासन ने दुनिया भर में नए स्टूडेंट वीजा अपॉइंटमेंट्स पर रोक लगा दी। कारण? “सिक्योरिटी” (security concerns) और सोशल मीडिया की स्क्रूटनी ( social media scrutiny) । लेकिन ये सिर्फ तकनीकी बात नहीं है, ये एक बड़ा पॉलिसी शिफ्ट ( policy shoift) है। इसका असर? भारत के लाखों स्टूडेंट्स ( Indian students) , जो अमेरिका में पढ़ाई का सपना देखते हैं, उनकी उम्मीदों पर पानी फिर रहा है।
कितना बड़ा है ये मसला?

चलिए, कुछ आंकड़ों से समझते हैं। 2023-24 में अमेरिकी यूनिवर्सिटीज में 11.3 लाख इंटरनेशनल स्टूडेंट्स पढ़ रहे थे। इनमें से 3.3 लाख – यानी 30% – भारतीय स्टूडेंट्स थे। जी हां, भारतीय स्टूडेंट्स ने चीनी स्टूडेंट्स को पीछे छोड़ दिया और अमेरिका में सबसे ज्यादा स्टूडेंट्स भेजने वाला देश बन गया। पिछले साल के मुकाबले भारतीय स्टूडेंट्स की संख्या में 23% की बढ़ोतरी हुई। और क्या? इनमें से 42.9% स्टूडेंट्स मैथ्स और कंप्यूटर साइंस में हैं, 24.5% इंजीनियरिंग में। यानी, ये स्टूडेंट्स अमेरिका की टेक इकॉनमी की रीढ़ हैं।
पैसा कहां से आता है?
अब ये सुनिए – 2024 की इंडियन स्टूडेंट मोबिलिटी रिपोर्ट कहती है कि 2025 तक भारतीय स्टूडेंट्स अमेरिका में 17.4 बिलियन डॉलर – यानी करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये – खर्च करेंगे। इसमें 10.1 बिलियन डॉलर यानी करीब साढ़े 86 हजार करोड़ ट्यूशन फीस, 4 बिलियन डॉलर यानी साढ़े तीन सौ करोड़ रहने-खाने और 3.3 बिलियन डॉलर यानी पौने तीन सौ करोड़ रुपये दूसरी चीजों पर। 2022 में ये आंकड़ा 10.5 बिलियन डॉलर था, यानी सिर्फ 3 साल में 65% की बढ़ोतरी। और खास बात? ज्यादातर भारतीय स्टूडेंट्स अपनी पढ़ाई खुद फंड करते हैं। कोई स्कॉलरशिप नहीं, कोई सरकारी मदद नहीं – अपने माता-पिता के दम पर। ये पैसा अमेरिकी यूनिवर्सिटीज के लिए लाइफलाइन है। फिर भी, ट्रंप की नीतियां इन स्टूडेंट्स को टारगेट कर रही हैं। क्यों? ये समझ से परे है। यानी अपनी सनक में ट्रम्प प्रशासन न केवल भारतीय स्टूडेन्ट को टारगेट कर रहे हैं, बल्कि अमेरिकी यूनिवर्सिटी की कमाई पर भी रोक लगा रहे हैं।
क्या है असली दिक्कत?

पहली दिक्कत – ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (OPT) प्रोग्राम खतरे में है। OPT स्टेम ग्रैजुएट्स को ग्रैजुएशन के बाद 3 साल तक अमेरिका में काम करने की इजाजत देता है। अगर इसे खत्म किया गया या छोटा किया गया, तो अमेरिकी डिग्री की वैल्यू भारतीय स्टूडेंट्स के लिए कम हो जाएगी। क्यों? क्योंकि वो वर्क एक्सपीरियंस जो ग्लोबल करियर की शुरुआत करता है, वो खत्म हो जाएगा। नतीजा? स्टूडेंट्स कनाडा, जर्मनी या ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की ओर रुख करेंगे, जहां पोस्ट-स्टडी वर्क ऑप्शन्स ज्यादा साफ और आसान हैं।
सोशल मीडिया का डर

और दोस्तों, अब तो सोशल मीडिया भी मुसीबत बन गया है। नई पॉलिसी के तहत हर स्टूडेंट वीजा अप्लिकेंट की ऑनलाइन एक्टिविटी को AI से स्कैन किया जा रहा है। कोई पॉलिटिकल पोस्ट, कोई मजाक, या कोई गलत समझा गया कमेंट – और आपका वीजा खारिज! स्टूडेंट्स को सलाह दी जा रही है कि वो अपने सोशल मीडिया को “साफ” करें – पॉलिटिकल पोस्ट्स डिलीट करें, ग्रुप्स छोड़ दें। ये क्या है? ये तो आजादी पर हमला है! अमेरिका, जो खुद को फ्रीडम का चैंपियन कहता है, वो स्टूडेंट्स को सेल्फ-सेंसरशिप के लिए मजबूर कर रहा है।
ICE का खौफ
अमेरिका में पढ़ रहे स्टूडेंट्स की भी हालत खराब है। US इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट (ICE) ने निगरानी बढ़ा दी है। क्लास मिस की, अंडरएज ड्रिंकिंग की, या कोई छोटी-मोटी गलती की – और आपका वीजा रद्द! आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 300 से ज्यादा स्टूडेंट वीजा रद्द हुए हैं, लेकिन इनसाइडर्स कहते हैं कि असल संख्या हजारों में हो सकती है। ये तनाव भारतीय स्टूडेंट्स के लिए बहुत बड़ा है, जो अपनी फैमिली की जिंदगी भर की कमाई दांव पर लगाकर वहां पढ़ने जाते हैं।
क्यों कर रहा है ट्रंप प्रशासन ऐसा?

ट्रंप प्रशासन इसे “नेशनल सिक्योरिटी” का नाम देता है, लेकिन क्रिटिक्स कहते हैं कि ये पॉलिटिकल मूव है। ट्रंप और उनके वाइस प्रेसिडेंट जेडी वैंस यूनिवर्सिटीज को लिबरल एक्टिविज्म का अड्डा मानते हैं। एक नया प्रस्ताव है – इंटरनेशनल स्टूडेंट्स की संख्या पर 15% की कैप लगाने का। ये सिक्योरिटी मेजर कम, वैचारिक हमला ज्यादा लगता है। खासकर, प्रो-फिलिस्तीन एक्टिविज्म को टारगेट किया जा रहा है। अगर आपने सोशल मीडिया पर फिलिस्तीन के सपोर्ट में कुछ लिखा, या भारत के किसी पॉलिटिकल इश्यू पर पोस्ट किया, तो आपकी वीजा अप्लिकेशन पर खतरा मंडराने लगता है।
भारतीय स्टूडेंट्स के पास क्या ऑप्शन्स हैं?
अब सवाल ये है – क्या भारतीय स्टूडेंट्स का अमेरिकी सपना खत्म हो गया? एक्सपर्ट्स कहते हैं, “नहीं, ये टेम्पररी फेज है।” हार्वर्ड की एलुमनाई और रीच आइवी की फाउंडर विभा कागजी का कहना है कि अमेरिकी एजुकेशन सिस्टम इतिहास में खुद को ठीक करता रहा है। यूनिवर्सिटीज और इंडस्ट्रीज का दबाव ट्रंप प्रशासन को नरम करने पर मजबूर कर सकता है। लेकिन तब तक, भारतीय स्टूडेंट्स ऑल्टरनेटिव्स तलाश रहे हैं। मिसाल के तौर पर, जर्मनी में 2022 से 2024 के बीच भारतीय स्टूडेंट्स की संख्या 68% बढ़ी – 20,684 से 34,720। कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, यहां तक कि UAE भी भारतीय स्टूडेंट्स को आकर्षित कर रहे हैं – सस्ती फीस, आसान वीजा, और साफ पोस्ट-स्टडी वर्क ऑप्शन्स के साथ।
भारत क्या कर सकता है?
दोस्तों, अब वक्त है कि भारत अपने घर को मजबूत करे। नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के तहत हमें अपनी यूनिवर्सिटीज को वर्ल्ड-क्लास बनाना होगा। फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ डुअल डिग्री प्रोग्राम्स बढ़ाने होंगे। हाइब्रिड मॉडल्स – ऑनलाइन पढ़ाई और छोटे-मोटे ओवरसीज रेजिडेंसी – भी पॉपुलर हो रहे हैं। ये सब वीजा की टेंशन को कम कर सकता है।
भारत की दोहरी चुनौती

अमेरिका लंबे वक्त से भारतीय स्टूडेंट्स का सपना रहा है, लेकिन आज उसकी पॉलिसीज़ उस खुलेपन और डाइवर्सिटी को नुकसान पहुंचा रही हैं, जो उसे ग्लोबल पावरहाउस बनाती थीं। भारत के लिए चुनौती दोहरी है – अपने स्टूडेंट्स के हितों की रक्षा करना और अपनी एजुकेशन सिस्टम को मजबूत करना। लेकिन स्टूडेंट्स के लिए मैसेज साफ है – ऑप्शन्स बढ़ रहे हैं। अमेरिकी सपना खत्म नहीं हुआ, बस उसे नया रूप मिल रहा है।

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