Biography of Shubhanshu Shukla- राकेश शर्मा के बाद भारत के दूसरे अंतरिक्ष यात्री कैसे बन पाए शुभांशु शुक्ला, घरवालों से क्यों छुपाया ? पूरी कहानी
Posted by Admin | 11 June, 2025

भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) के ग्रुप कैप्टन (Group Captain) शुभांशु शुक्ला (Shubhanshu Shukla) जल्द ही देश के दूसरे अंतरिक्ष यात्री (Astronaut) बनने जा रहे हैं। 1984 में राकेश शर्मा के बाद वह भारत के दूसरे यात्री होंगे जो कुछ ही दिन में अंतरिक्ष की सैर करेंगे। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के त्रिवेणी नगर में उनके माता-पिता के घर में खुशी का माहौल है। उनके पिता शंभू दयाल शुक्ला और मां आशा शुक्ला को गर्व है कि उनका बेटा न केवल भारतीय वायुसेना का गौरव बढ़ा रहा है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station – ISS) पर भारत का परचम लहराने जा रहा है।
शुभांशु को पहले इसरो ने चुना और फिर 2024 में इसरो ने शुभांशु को नासा के साथ संयुक्त मिशन, Axiom-4 (Ax-4), के लिए प्राइम अंतरिक्ष यात्री के रूप में तैयार किया। अब इस मिशन में वह अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर जाएंगे और 14 दिन तक वहां वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे। इस मिशन में उनके साथ पोलैंड, हंगरी और अमेरिका के अंतरिक्ष यात्री भी होंगे। शुभांशु को प्राइम पायलट के रूप में चुना गया, जबकि प्रशांत नायर बैकअप पायलट होंगे। शुभांशु की कहानी प्रेरणा से भरी है, जो मेहनत, लगन और सपनों को सच करने की जिद की मिसाल है। यंगिस्तान ( youngistan.co.in) शुभांशु जैसे युवाओं को सलाम करता है।
लखनऊ की गलियों में बीता बचपन
शुभांशु शुक्ला का जन्म 10 अक्टूबर 1985 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुआ। उनका बचपन लखनऊ के त्रिवेणी नगर में बीता, जहां वह अपने माता-पिता और दो बड़ी बहनों के साथ रहते थे। उनके पिता शंभू दयाल शुक्ला एक साधारण परिवार से थे और चाहते थे कि उनका बेटा सिविल सेवा (Civil Services) में जाए और आईएएस (IAS) अधिकारी बने। लेकिन शुभांशु का मन कुछ और ही चाहता था। उनकी मां आशा शुक्ला बताती हैं कि वह बचपन से ही बहुत मेहनती और संतोषी स्वभाव का था। घर में जो खाना बनता, उसे चुपचाप खा लेता और कभी कोई जिद या मांग नहीं करता था।
शुभांशु की पढ़ाई लखनऊ के मशहूर सिटी मॉन्टेसरी स्कूल (CMS) की अलीगंज ब्रांच में हुई। स्कूल में वह एक औसत लेकिन मेहनती छात्र थे। उनकी बड़ी बहन शुचि मिश्रा बताती हैं कि शुभांशु ने बचपन में कभी यह नहीं कहा कि वह अंतरिक्ष यात्री बनना चाहते हैं। बल्कि, परिवार को लगता था कि वह शायद वायुसेना में बड़ा अधिकारी, जैसे एयर चीफ मार्शल, बनेगा। लेकिन शुभांशु की जिंदगी ने एक अलग ही राह चुनी।
उनके पिता शंभू दयाल याद करते हैं कि जब शुभांशु ने नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) का फॉर्म भरा, तो परिवार को इसकी भनक तक नहीं थी। एक दिन उनके दोस्त का फोन आया और उसने खुशी-खुशी बताया कि शुभांशु का एनडीए में चयन हो गया है। यह खबर सुनकर परिवार को हैरानी भी हुई और खुशी भी। शंभू दयाल बताते हैं कि वह खुद कभी शुभांशु के साथ एनडीए की परीक्षा या ट्रेनिंग के लिए नहीं गए। जब शुभांशु ट्रेनिंग के लिए जा रहे थे, तो पिता ने उन्हें लखनऊ के चारबाग स्टेशन पर ट्रेन में बैठाया और बेटे को अपने सपनों की ओर रवाना किया।
मेहनत और लगन की मिसाल

शुभांशु का एनडीए में चयन 16 साल की उम्र में हुआ, जो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि थी। एनडीए में चयन की प्रक्रिया आसान नहीं होती। इसके लिए लिखित परीक्षा, शारीरिक फिटनेस टेस्ट, और सर्विस सिलेक्शन बोर्ड (SSB) के इंटरव्यू से गुजरना पड़ता है। शुभांशु ने इन सभी चरणों को अपनी मेहनत और लगन से पार किया।
एनडीए की ट्रेनिंग के बाद, शुभांशु ने 2006 में भारतीय वायुसेना में फाइटर पायलट के रूप में कमीशन हासिल किया। उन्होंने सुखोई-30 एमकेआई, मिग-21, मिग-29, जगुआर, हॉक, डोर्नियर और एन-32 जैसे कई लड़ाकू और अन्य विमानों को उड़ाने में कामयाबी हासिल की। उनके पास 2,000 घंटे से ज्यादा उड़ान का अनुभव है, जो उनकी काबिलियत को दर्शाता है। वायुसेना में उनकी मेहनत और कौशल ने उन्हें टेस्ट पायलट की भूमिका तक पहुंचाया, जो एक बहुत ही जिम्मेदारी भरा काम है। टेस्ट पायलट नए विमानों और तकनीकों का परीक्षण करते हैं, जिसमें जोखिम भी बहुत होता है।
शुभांशु के पिता बताते हैं कि उनका बेटा हमेशा अपनी योजनाएं छुपाकर रखता था। जब वह टेस्ट पायलट बने, तब भी परिवार को ज्यादा कुछ नहीं बताया। उनकी यह आदत बाद में भी बनी रही, जब उन्हें अंतरिक्ष मिशन के लिए चुना गया।
अंतरिक्ष यात्री बनने का सफर: इसरो और गगनयान मिशन

शुभांशु का अंतरिक्ष यात्री बनने का सफर तब शुरू हुआ, जब उन्हें 2019 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के गगनयान मिशन के लिए चुना गया। गगनयान भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन है, जिसका लक्ष्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजना है। इस मिशन के लिए चार वायुसेना पायलटों का चयन हुआ, जिसमें शुभांशु शुक्ला और ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालकृष्णन नायर शामिल थे।
गगनयान मिशन के लिए चुने गए इन पायलटों को रूस के यूरी गगारिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में कठिन प्रशिक्षण से गुजरना पड़ा। यह प्रशिक्षण अंतरिक्ष यात्रा की तैयारी के लिए जरूरी था, जिसमें माइक्रोग्रैविटी (Microgravity) में काम करना, अंतरिक्ष यान के सिस्टम को समझना, और आपातकालीन स्थितियों से निपटने की ट्रेनिंग शामिल थी। शुभांशु ने इस प्रशिक्षण को बखूबी पूरा किया और अपनी काबिलियत साबित की।
नासा में चयन की प्रक्रिया
नासा जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन के साथ काम करने के लिए चयन की प्रक्रिया बहुत कठिन और बहु-स्तरीय होती है। शुभांशु का चयन इसरो और नासा के बीच एक समझौते का हिस्सा था, जो 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान हुआ। इस समझौते के तहत भारत और अमेरिका ने मिलकर Axiom-4 मिशन पर काम करने का फैसला किया। लेकिन नासा में चयन के लिए कुछ खास योग्यताएं और प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।
शैक्षिक योग्यता और अनुभव: नासा के अंतरिक्ष मिशन के लिए उम्मीदवार को साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग या मैथमेटिक्स (STEM) में डिग्री होनी चाहिए। साथ ही, उनके पास पायलट के रूप में व्यापक अनुभव होना चाहिए। शुभांशु के पास वायुसेना में 2,000 घंटे से ज्यादा उड़ान का अनुभव था, जो उनकी योग्यता को दर्शाता है।
शारीरिक और मानसिक फिटनेस: अंतरिक्ष यात्री को शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह फिट होना चाहिए। इसके लिए कठिन मेडिकल टेस्ट, फिटनेस टेस्ट और मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन किए जाते हैं। अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी और सीमित जगह में काम करना आसान नहीं होता, इसलिए उम्मीदवार को हर तरह की स्थिति के लिए तैयार होना पड़ता है।
प्रशिक्षण: नासा और इसरो के मिशन के लिए उम्मीदवारों को विशेष प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है। इसमें अंतरिक्ष यान के सिस्टम, वैज्ञानिक प्रयोग, आपातकालीन प्रक्रियाएं और टीमवर्क की ट्रेनिंग शामिल होती है। शुभांशु ने रूस में प्रशिक्षण लिया और फिर नासा के सेंटर्स में भी ट्रेनिंग की।
चयन प्रक्रिया: इसरो ने पहले गगनयान मिशन के लिए उम्मीदवारों का चयन किया, जिसमें शुभांशु शामिल थे। इसके बाद, नासा और इसरो ने मिलकर Axiom-4 मिशन के लिए प्राइम और बैकअप अंतरिक्ष यात्रियों का चयन किया। इस प्रक्रिया में उम्मीदवार की तकनीकी जानकारी, अनुभव, और मिशन के लिए उपयुक्तता को परखा जाता है।
टीमवर्क और नेतृत्व: अंतरिक्ष मिशन में कई देशों के लोग साथ काम करते हैं। इसलिए, उम्मीदवार को अच्छा कम्युनिकेटर और लीडर होना चाहिए। शुभांशु की नेतृत्व क्षमता और उनकी वायुसेना की ट्रेनिंग ने उन्हें इस मिशन के लिए उपयुक्त बनाया।
शुभांशु का चयन इस बात का सबूत है कि मेहनत, अनुशासन और सही दिशा में काम करने से कोई भी बड़ा लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
Axiom-4 मिशन: भारत का गौरव
Axiom-4 मिशन नासा और इसरो का एक संयुक्त प्रयास है, जिसमें शुभांशु शुक्ला 14 दिन के लिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर जाएंगे। यह मिशन 10 जून 2025 को स्पेसएक्स के ड्रैगन अंतरिक्ष यान से लॉन्च होने वाला था, लेकिन हाल ही में यह 11 जून तक के लिए स्थगित हो गया। इस मिशन में शुभांशु सात वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे, जो माइक्रोग्रैविटी में किए जाएंगे। यह मिशन भारत के लिए गर्व की बात है, क्योंकि 1984 में राकेश शर्मा के बाद यह पहला मौका है जब कोई भारतीय अंतरिक्ष यात्री ISS पर जाएगा।
शुभांशु ने एक बयान में कहा, “यह मेरी नहीं, 140 करोड़ भारतीयों की अंतरिक्ष यात्रा है।” उनकी यह बात देशवासियों के लिए प्रेरणा है। उनके माता-पिता को गर्व है कि उनका बेटा न केवल उनके सपनों को पूरा कर रहा है, बल्कि पूरे देश का नाम रोशन कर रहा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी शुभांशु को बधाई दी और कहा कि यह हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण है।
शुभांशु की प्रेरणा और भविष्य

शुभांशु शुक्ला की कहानी हर उस युवा के लिए प्रेरणा है जो बड़े सपने देखता है। लखनऊ की गलियों से निकलकर अंतरिक्ष तक का उनका सफर मेहनत, लगन और अनुशासन की मिसाल है। उनके पिता कहते हैं, “उसका लक्ष्य पूरा हो रहा है, जिसके लिए वह 2019 से तैयारी कर रहा था। यह देश और प्रदेश के लिए गर्व की बात है।” उनकी मां आशा शुक्ला अपनी बहू की भी तारीफ करती हैं, जो शुभांशु के इस सफर में उनका साथ दे रही हैं।
शुभांशु का यह मिशन न केवल भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा, बल्कि यह भी दिखाएगा कि भारत अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर कितना सक्षम है। गगनयान मिशन और Axiom-4 जैसे प्रयास भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान में अग्रणी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।
शुभांशु शुक्ला की कहानी एक साधारण परिवार के लड़के की असाधारण उपलब्धि की कहानी है। लखनऊ के त्रिवेणी नगर से शुरू हुआ उनका सफर अब अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक पहुंच गया है। भारतीय वायुसेना में फाइटर पायलट से लेकर अंतरिक्ष यात्री बनने तक, उनकी यात्रा मेहनत और लगन से भरी है। नासा और इसरो के संयुक्त मिशन में उनका चयन इस बात का सबूत है कि भारत के युवा किसी भी क्षेत्र में दुनिया का मुकाबला कर सकते हैं।

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