Reality of Balochistan Train Hijack- दो टुकड़ों में ‘बंटने’ से चंद ‘क़दम’ दूर है पाकिस्तान ? पड़ोसी ने हमारे कश्मीर में जो किया, उसका ‘बदला’ बलूचिस्तान में मिल गया, पूरी पड़ताल
Posted by Admin | 11 March, 2025

Pakistan’s Balochistan Crysis- हमारा पड़ोस देश पाकिस्तान ( Pakistan) बर्बादी के कगार पर खड़ा है। आर्थिक तौर पर तबाह हो चुके पाकिस्तान को बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ( BLA) ने पूरी दुनिया के सामने एक बार फिर नंगा कर दिया। अपने ही देश में जिस ट्रेन में पाकिस्तान के आर्मी अफसर और ISI के एजेंट सफर कर रहे हों, उसे एक आतंकी संगठन ट्रेन की पटरियां उड़ाकर हाईजैक (Balochistan Train Hijack) कर ले तो ऐसी आर्मी पर तरस ही खाया जा सकता है। जिस तरह बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (Balochistan Libration Army) ने पाकिस्तानी सरकार को घुटने पर ला दिया, उससे पाकिस्तान को अहसास हो गया होगा कि कश्मीर ( Kashmir) में इतने दशकों तक उसने जो पाप किए, उसकी सज़ा उसे मिल रही है।
पाकिस्तान आज एक ऐसे आग के मुहाने पर खड़ा है, जो उसने खुद अपने हाथों से लगाई थी। दशकों तक भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला ये मुल्क अब खुद उसी आग में जल रहा है। एक तो पाकिस्तान आर्थिक तौर पर कंगाल हो चुका है, दूसरा उसका सबसे बड़ा प्रांत बलूचिस्तान, आज जंग का मैदान बन गया है। वहां की बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) ने पूरी ट्रेन को हाईजैक कर लिया। दुनिया में ऐसे वाकये ना के बराबर हुए हैं। क्वेटा से पेशावर जा रही जाफर एक्सप्रेस ट्रेन को बोलन इलाके में अगवा किया गया, जिसमें करीब 500 यात्री सवार थे। बीएलए ने पहले रेलवे ट्रैक को बम से उड़ाया और फिर ट्रेन को अपने कब्जे में ले लिया। इस ट्रेन में जो आम लोग, औरतें और बच्चे थे, उनको बलूच ने छोड़ दिया, लेकिन करीब 100 के आसपास पाकिस्तानी सेना के जवान और खुफिया एजेंसी आईएसआई के लोग भी सवार थे, उनको बंधक बनाए रखा। बाद में उनको छुड़ाने गए सेना के दर्जनों लोग मारे गए। भारत को गीदड़ भभकियां देने वाले पाकिस्तान की अपने ही घर में नाक कट गई।
बलूचिस्तान का संकट ( Balochistan Crysis)

ये घटना सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि बलूचिस्तान में दशकों से चल रहे उस संकट का नतीजा है, जो अब पाकिस्तान के लिए गले की हड्डी बन गया है। बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है। ये इलाका इतना बड़ा है कि पाकिस्तान की कुल जमीन का करीब 44% हिस्सा यही घेरता है। यहां की आबादी बहुत कम है, सिर्फ 6% लोग ही इस विशाल इलाके में रहते हैं। बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों का खजाना है—प्राकृतिक गैस, तेल, कोयला, और खनिजों की यहां भरमार है। फिर भी ये इलाका गरीबी, भुखमरी, और पिछड़ेपन का शिकार है। सवाल ये है कि इतना समृद्ध इलाका होने के बावजूद बलूचिस्तान की हालत इतनी खराब क्यों है?
जवाब आसान है—पाकिस्तान की सरकार और सेना ने बलूच लोगों को कभी उनका हक नहीं दिया। बलूचिस्तान के संसाधनों को लूटा जाता है, लेकिन वहां के लोगों को न नौकरी मिलती है, न शिक्षा, न स्वास्थ्य सुविधाएं। बलूच लोग अपनी जमीन से निकलने वाली गैस का इस्तेमाल तक नहीं कर सकते, क्योंकि वो सब पंजाब और बड़े शहरों में चली जाती है। ये नाइंसाफी दशकों से चली आ रही है।
1947 में जब पाकिस्तान बना, तो बलूचिस्तान को जबरदस्ती इसमें शामिल कर लिया गया। उस वक्त बलूच लोग आजादी चाहते थे, लेकिन उनकी आवाज को कुचल दिया गया। तब से लेकर आज तक बलूच लोग अपने हक और आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं।
ये संकट सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक भी है। बलूच लोग अपनी अलग पहचान, अपनी भाषा (बलोची), और अपनी परंपराओं को बचाना चाहते हैं। लेकिन पाकिस्तानी सरकार उन्हें पंजाबी संस्कृति में ढालना चाहती है। इस जबरदस्ती से बलूचों का गुस्सा बढ़ता गया, और ये गुस्सा अब हिंसा में बदल गया है।
पाकिस्तानी सेना के अत्याचार

बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना ने जो जुल्म किए, वो सुनकर किसी का भी खून खौल जाए। ये कोई नई बात नहीं है—पिछले 70 सालों से बलूच लोग सेना के दमन का शिकार होते आए हैं। मानवाधिकार संगठनों का दावा है कि हजारों बलूच लोग गायब कर दिए गए। इनमें नौजवान, छात्र, नेता, और आम लोग शामिल हैं। सेना पर इल्जाम है कि वो लोगों को रात के अंधेरे में घरों से उठा लेती है, और फिर उनका कोई पता नहीं चलता। इन गायब हुए लोगों को “लापता” कहा जाता है, और इनकी तादाद 20,000 से भी ज्यादा बताई जाती है।
सेना के जवान बलूच गांवों में घुसते हैं, घरों को जलाते हैं, लोगों को मारते हैं, और औरतों-बच्चों तक को नहीं बख्शते। जो लोग अपनी आवाज उठाते हैं, उन्हें आतंकवादी करार दे दिया जाता है। फिर उनकी लाशें सड़कों पर फेंक दी जाती हैं, ताकि बाकी लोग डर जाएं। बलूच नेताओं का कहना है कि ये सब इसलिए किया जाता है ताकि बलूच लोग अपनी आजादी की मांग छोड़ दें। लेकिन उल्टा हुआ—ये अत्याचार बलूचों के गुस्से को और भड़काने का काम कर रहे हैं।
पाकिस्तानी सेना ने बलूचिस्तान में कई सैन्य ऑपरेशन चलाए। इनमें हेलिकॉप्टर, टैंक, और भारी हथियारों का इस्तेमाल किया गया। गांव के गांव तबाह कर दिए गए। स्कूल, अस्पताल, और बाजार तक नष्ट कर दिए गए। बलूच लोगों का कहना है कि सेना उन्हें इंसान नहीं, बल्कि दुश्मन समझती है। इन अत्याचारों की वजह से बलूचिस्तान में शांति कभी नहीं रही। हर घर में कोई न कोई ऐसा शख्स है, जिसे सेना ने या तो मार दिया या गायब कर दिया।
बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी कैसे बनी

बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी यानी बीएलए का जन्म इसी दमन और नाइंसाफी से हुआ। ये संगठन भले साल 2000 में औपचारिक तौर पर बना, लेकिन इसकी जड़ें बहुत पुरानी हैं। बलूच लोग 1947 से ही अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे, लेकिन शुरुआत में ये आंदोलन शांतिपूर्ण था। जुल्फिकार अली भुट्टो के ज़माने में बलूचिस्तान को अलग करने का आंदोलन चल रहा था, लेकिन जब जिया उल हक आए तो उन्होंने बातचीत से मसले के समाधान की कोशिश की। सरदार अकबर खान बुगती बलूचिस्तान के सबसे बड़े नेता रहे हैं। वह बलूचिस्तान सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री भी थे। उन्हें बलूच लिबरेशन आर्मी के सबसे वरिष्ठ लोगों में से एक माना जाता था।
जब परवेज मुशर्रफ तानाशाह बने तो सेना के ज़रिए कई बलूच नेताओं की हत्या करवा दी। दरअसल परवेज मुशर्रफ ने साल 2000 में सेना के जरिए बलूचिस्तान हाईकोर्ट के जस्टिस नवाब मिरी की हत्या करवा दी। शतरंज की चाल चलते हुए पाकिस्तानी सेना ने मुशर्रफ के कहने पर इस केस में बलूच नेता खैर बक्श मिरी को गिरफ्तार कर लिया। 26 अगस्त 2006 को पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने उनकी हत्या कर दी। इसके बाद नवाब खैर बख्श मिरी के बेटे नवाबजादा बालाच मिरी को बीएलए का प्रमुख बनाया गया। नवंबर 2007 में पाकिस्तानी सेना ने बालाच मिरी की भी हत्या कर दी। इसी साल पाकिस्तान ने बीएलए को प्रतिबंधित समूह घोषित कर दिया। इसके बाद उनके भाई हीरबयार मिरी को बलूच लिबरेशन आर्मी की कमान सौंपी गई, लेकिन ब्रिटेन में रहने वाले हीरबयार ने कभी भी इस संगठन का मुखिया होने के दावे को स्वीकार नहीं किया। इसके बाद ये आग फिर से भड़कने लगी। पिछले 10 साल में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के साथ कई संगठन मिल गए हैं और हर बलूच नौजवान पाकिस्तानी सेना के खिलाफ बंदूक लिए खड़ा है। ऐड फिल्मों में काम करते हुए नितांशी को ये अहसास हुआ कि वो कैमरे के सामने बहुत कंफर्टेबल फील करती हैं। बस यहीं से उनके मम्मी-पापा ने सोचा कि क्यों न इसे सीरियसली लिया जाए। उन्होंने नितांशी को ऑडिशन्स देने के लिए मुंबई भेजना शुरू किया। छोटी-छोटी शुरुआत से ही नितांशी का कॉन्फिडेंस बढ़ता गया।
बीएलए का एक ही मकसद

बीएलए का एक ही मकसद है—बलूचिस्तान को पाकिस्तान से आजाद कराना। उनका कहना है कि बलूचिस्तान एक अलग देश था, जिसे जबरदस्ती पाकिस्तान में मिलाया गया। बीएलए के लड़ाके मानते हैं कि बातचीत से अब कुछ नहीं होगा, क्योंकि पाकिस्तान सिर्फ ताकत की भाषा समझता है। इस संगठन में करीब 6,000 लड़ाके बताए जाते हैं, जो गुरिल्ला युद्ध में माहिर हैं। इनमें मजीद ब्रिगेड जैसी खतरनाक टुकड़ियां भी हैं, जो आत्मघाती हमले करने के लिए जानी जाती हैं। जिस तरह से बीएलए ट्रेन हाइजैक जैसी वारदात कर रहा है, उससे लगता है कि वो दिन दूर नहीं, जब पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंट जाएगा।
बीएलए ने पिछले दो दशकों में कई बड़े हमले किए। इनमें सेना के कैंप, सरकारी दफ्तर, और चीनी प्रोजेक्ट्स को निशाना बनाया गया। हाल की ट्रेन हाईजैकिंग इस बात का सबूत है कि बीएलए अब पहले से कहीं ज्यादा ताकतवर और संगठित हो गई है। बीएलए को बलूचिस्तान की जनता का बड़ा समर्थन मिलता है, क्योंकि लोग इसे अपनी आजादी की आखिरी उम्मीद मानते हैं।
पाकिस्तान, अमेरिका, और ब्रिटेन ने बीएलए को आतंकवादी संगठन घोषित किया है। लेकिन बलूच लोग इसे अपनी आजादी की सेना कहते हैं। बीएलए का कहना है कि वो सिर्फ अपने हक की लड़ाई लड़ रही है, और पाकिस्तानी सेना ही असली आतंकवादी है।
पाकिस्तान ने कई बार बलूचिस्तान को सपोर्ट देने के लिए भारत को भी दोषी ठहराया है, लेकिन भारत ने उसको मुंहतोड़ जवाब दिया। भारत का कहना है कि जिस तरह पाकिस्तान दशकों से कश्मीर में आतंकी भेजता आ रहा है, उसे अपने गिरबां में झांकना चाहिए।
चीन की भूमिका: दोस्त या दुश्मन?

बलूचिस्तान में चीन का बड़ा दखल है, और यही बीएलए की सबसे बड़ी नाराजगी की वजह है। चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) नाम का एक मेगा प्रोजेक्ट चल रहा है, जिसके तहत बलूचिस्तान में सड़कें, रेलवे, और बंदरगाह बनाए जा रहे हैं। ग्वादर पोर्ट, जो बलूचिस्तान में है, इस प्रोजेक्ट का सबसे अहम हिस्सा है। चीन का दावा है कि इससे इलाके में तरक्की आएगी। लेकिन बलूच लोग इसे अपनी जमीन की लूट मानते हैं।
बलूचों का इल्जाम है कि सीपीईसी से नौकरियां और फायदा सिर्फ चीनी और पंजाबी लोगों को मिल रहा है। बलूच लोगों को न तो नौकरी दी जा रही है, न ही कोई हिस्सेदारी। ऊपर से चीनी कंपनियां बलूचिस्तान के संसाधनों को लूट रही हैं। ग्वादर में मछुआरों को समुद्र में जाने से रोका जा रहा है, जिससे उनकी रोजी-रोटी छिन गई है। बीएलए का कहना है कि चीन और पाकिस्तान मिलकर बलूच लोगों को उनकी ही जमीन से बेदखल कर रहे हैं।
बीएलए ने कई बार चीनी प्रोजेक्ट्स और इंजीनियरों पर हमले किए। इन हमलों में कई चीनी नागरिक मारे गए, जिससे चीन नाराज है। वो पाकिस्तान पर दबाव डाल रहा है कि बीएलए को कुचल दे। लेकिन बीएलए इसे अपनी जमीन की हिफाजत की लड़ाई मानती है।
अफगानिस्तान का रोल: कौन किसके साथ?

बलूचिस्तान का संकट सिर्फ पाकिस्तान तक सीमित नहीं है। इसका कनेक्शन अफगानिस्तान से भी है। बलूचिस्तान की सीमा अफगानिस्तान और ईरान से लगती है। पाकिस्तान का इल्जाम है कि बीएलए को अफगानिस्तान से मदद मिलती है। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि अफगान तालिबान और बीएलए के बीच गठजोड़ है। दोनों का दुश्मन एक ही है—पाकिस्तानी सेना।
अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता आने के बाद से पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ी हैं। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) नाम का संगठन भी पाकिस्तानी सेना के खिलाफ जंग लड़ रहा है। टीटीपी और बीएलए के बीच सहयोग की खबरें आती रही हैं। अफगानिस्तान की जमीन से ये संगठन अपने ठिकाने चलाते हैं, और पाकिस्तान का इन पर कोई कंट्रोल नहीं है।
पाकिस्तान का कहना है कि अफगानिस्तान बीएलए को हथियार और ट्रेनिंग दे रहा है। लेकिन इसके पक्के सबूत नहीं हैं। बलूच नेताओं का कहना है कि उन्हें किसी बाहरी मदद की जरूरत नहीं, क्योंकि उनकी लड़ाई अपनी जनता के दम पर चल रही है।
क्या बलूचिस्तान आजाद देश बन जाएगा?

ये सवाल हर किसी के मन में है—क्या बलूचिस्तान सचमुच आजाद हो जाएगा? जवाब आसान नहीं है। बीएलए की ताकत बढ़ रही है, और हाल की ट्रेन हाईजैकिंग से साफ है कि वो अब बड़े हमले करने में सक्षम है। बलूचिस्तान के 7 में से 5 जिलों पर बीएलए का कब्जा बताया जाता है। अगर ये सच है, तो पाकिस्तान के लिए ये बहुत बड़ा खतरा है। हालांकि चीन के समर्थन के कारण रूस भी अनजाने में पाकिस्तान सरकार का साथ दे रहा है और भारत-रूस की दोस्ती को बैलेंस करने के लिए अमेरिका भी पाकिस्तान को अंदरखाने सपोर्ट करता है। इसलिए फौरी तौर पर भले इंटरनेशनल लेवल पर पाकिस्तान को बड़े देशों का समर्थन है, लेकिन बीएलए के ख़तरनाक हमलों ने उसको सपोर्टर्स की हिम्मत और बढ़ा दी है। पूरी दुनिया में उसकी फंडिंग भी बढ़ने की खबर है, ऐसे में पाकिस्तान की नाक में दम तो करता रहेगा।
बांग्लादेश बनाम बलूचिस्तान
1971 में बांग्लादेश के अलग होने की याद अभी भी पाकिस्तान को सताती है। बलूचिस्तान अगर आजाद हुआ, तो ये पाकिस्तान के लिए दूसरा बड़ा झटका होगा। लेकिन आजादी की राह आसान नहीं है। पाकिस्तानी सेना पूरी ताकत से बीएलए को कुचलने की कोशिश कर रही है। ऊपर से चीन का दबाव भी है, जो अपने अरबों डॉलर के निवेश को बचाना चाहता है।
दूसरी तरफ, बलूच लोगों का गुस्सा और जज्बा कम नहीं हो रहा। वो अपनी आजादी के लिए जान देने को तैयार हैं। अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने बलूचिस्तान के मसले पर ध्यान दिया, और पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा, तो शायद बलूचिस्तान का सपना पूरा हो जाए। लेकिन अभी ये कहना मुश्किल है कि ये कब और कैसे होगा।
कश्मीर का आतंकवाद और पाकिस्तान का नुकसान

पाकिस्तान ने दशकों तक कश्मीर में आतंकवाद को पाला-पोसा। उसने आतंकियों को हथियार दिए, ट्रेनिंग दी, और भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया। लेकिन आज वही आग उसके अपने घर में लग गई है। बीएलए और टीटीपी जैसे संगठन उसी तर्ज पर पाकिस्तानी सेना से लड़ रहे हैं, जैसे कभी आतंकी भारत से लड़ते थे।
कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तान ने जो नीति अपनाई, वही नीति अब उसके खिलाफ इस्तेमाल हो रही है। बीएलए के लड़ाके उसी तरह गुरिल्ला हमले कर रहे हैं, जैसे कश्मीरी आतंकी करते थे। फर्क सिर्फ इतना है कि अब निशाना भारत नहीं, बल्कि खुद पाकिस्तान है।
पाकिस्तान की सेना और सरकार को शायद अब एहसास हो रहा हो कि आतंकवाद को पालना कितना खतरनाक हो सकता है। जो जहर उसने भारत के लिए तैयार किया था, वही अब उसके अपने गले में उतर रहा है। बलूचिस्तान का संकट इस बात का सबूत है कि आतंकवाद किसी का दोस्त नहीं होता—वो जिसे पालता है, उसी को डंसता है।
आगे क्या होगा?

बलूचिस्तान का संकट अब सिर्फ पाकिस्तान का मसला नहीं रहा। ये एक ऐसा ज्वालामुखी है, जो फटने की कगार पर है। ट्रेन हाईजैकिंग ने सारी दुनिया का ध्यान इस ओर खींचा है। बीएलए की ताकत, बलूच लोगों का गुस्सा, और पाकिस्तानी सेना की बेबसी साफ दिख रही है।
अगर पाकिस्तान ने बलूच लोगों की बात सुनी और उनके हक दिए, तो शायद ये संकट खत्म हो जाए। लेकिन ऐसा होने के आसार कम हैं, क्योंकि सेना की नीति हमेशा से दमन की रही है। दूसरी तरफ, बीएलए भी पीछे हटने को तैयार नहीं। ऐसे में जंग और खूनखराबा बढ़ सकता है।
चीन, अफगानिस्तान, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का रवैया भी इस मसले को तय करेगा। अगर बलूचिस्तान आजाद हुआ, तो पाकिस्तान का बड़ा हिस्सा टूट जाएगा। और अगर ऐसा नहीं हुआ, तो भी ये संकट खत्म होने वाला नहीं।
पाकिस्तान आज अपने ही किए की सजा भुगत रहा है। कश्मीर में जो बीज वो बोता रहा, वो अब बलूचिस्तान में फसल बनकर उग आए हैं। सवाल ये है कि क्या पाकिस्तान इस आग को बुझा पाएगा, या फिर ये आग उसे पूरी तरह जला डालेगी? वक्त ही इसका जवाब देगा। आपका इसके बारे में क्या कहना है,अपनी राय कॉमेन्ट बॉक्स के ज़रिए ज़रूर रखें। यंगिस्तान के इस लेख को पढ़ने के लिए आपका शुक्रिया।

Post Comment