UCC 2025- अब ‘लिव-इन’ में रहने से पहले मम्मी-पापा से परमिशन लगेगी, हलाला और तीन शादियों पर रोक,UCC लागू होते ही क्या क्या बदला, 10 प्वाइंट में समझो।
Posted by Admin | 27 January, 2025

27 जनवरी 2025 से उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू हो गई है। लिव इन रिलेशनशिप यानी शादी किए बिना लड़का लड़की, घरवालों से छुपकर एक साथ रहने लगते हैं। शादी से पहले एक दूसरे को समझने के लिए युवा पीढ़ी इसको ज़रूरी मानती है, लेकिन अब इसमें भारी मुश्किलें आने वाली हैं। अभी यूसीसी उत्तराखण्ड में लागू हुआ है और इसके नतीजे देखने के बाद मोदी सरकार पूरे देश में धीरे धीरे इसको लागू कर देगी। अगर किसी तरह का धार्मिक विरोध होता है या कोई समुदाय मानने से इनकार करता है तो फिर उसका अलग तरीका निकाला जाएगा। बड़ा सवाल ये है कि लिव इन रिलेशनशिप, एक से ज़्यादा शादियां और मुसलिम समाज में औरतों के साथ होने वाली हलाला प्रथा पर अब उत्तराखण्ड में रोक के दावे किए जा रहे हैं। UCC के जरिए सभी धर्मों और समुदायों के लिए एक समान सिविल कानून व्यवस्था बनाने की कोशिश करने का दावा सरकार कर रही है।
इसके तहत विवाह, तलाक, संपत्ति, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे मामलों को लेकर स्पष्ट और बराबरी वाले नियम बनाए गए हैं। UCC के अंतर्गत लिव-इन रिलेशनशिप और हलाला प्रथा पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है। ये दोनों मुद्दे सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से लंबे समय से विवादास्पद रहे हैं।
क्या है लिव-इन रिलेशनशिप?

लिव-इन रिलेशनशिप ( liv-in-relationship) वह व्यवस्था है, जिसमें बिना शादी के युवा के साथ एक छत के नीचे रात गुजारते हैं। यह शहरी युवाओं के बीच आजादी और निजी पसंद का सिंबल माना जा रहा है। देहरादून ( Dehradun), मसूरी ( Mussoorie ), नैनीताल ( Nainital) , अल्मोड़ा ( Almora) हरिद्वार ( Haridwar) , रुड़की जैसे शहरों में बड़े पैमाने पर लड़के-लड़कियां लिव-इन में रहते आ रहे हैं। लेकिन अब उनको लिव इन में रहने से पहले इसका रजिस्ट्रेशन कराना होगा। जाहिर है इससे उनके मम्मी-पापा को भी पता चल जाएगा। इस डर से धड़ल्ले से होने वाले लिव-इन में रोक भी लग जाएगी। इसीलिए इसने कई कानूनी और सामाजिक विवादों को जन्म दिया है।
क्या हैं ‘लिव-इन’ के नए नियम

यूसीसी में लिव-इन रिलेशनशिप को समझाने और इसे कानूनी मान्यता देने की दिशा में कदम उठाए हैं। लिव में रहने से पहले अब ये नियम मानने होंगे।
- रजिस्ट्रेशन ज़रूरी : लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा। बिना रजिस्ट्रेशन के लिव-इन में रहना अवैध माना जाएगा।
- उम्र और रज़ामंदी: लड़की की उम्र 18 और लड़के की 21 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए। साथ ही, माता-पिता की रजामंदी ज़रूरी होगी। अब बताइये कौन माता-पिता लिव-इन में रहने की परमिशन देंगे। अगर उनको ये करवाना ही होगा तो सीधे शादी नहीं करवा देंगे।
- गलत जानकारी पर जुर्माना: यदि कोई पक्ष गलत जानकारी देता है, तो उस पर 25,000 रुपये तक का जुर्माना और जेल की सजा हो सकती है।
- बच्चे पैदा हुए तो: लिव-इन रिलेशनशिप में जन्मे बच्चे को वैध माना जाएगा। उसे अपने माता-पिता से सारे अधिकार मिलेंगे। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि अगर उनकी शादी ही नहीं हुई तब नई सामाजिक समस्या खड़ी हो जाएगी।
- महिला अधिकार: अब लिव इन में रहकर कुछ दिन बाद मन भर गया और ब्रेक-अप करना आसान नहीं होगा।
- ब्रेकअप को तलाक मान लिया जाएगा और ऐसी स्थिति में लड़की को भरण-पोषण और गुजारा भत्ता मिलेगा। यानी जिस शादी से बचकर मौज लेने आ रहे हो, उसको भूल जाओ। शादी वाली ही जिम्मेदारियां उठानी पड़ेगीं
सामाजिक और कानूनी प्रभाव

लिव-इन रिलेशनशिप पर सख्त नियम लागू करने का उद्देश्य इसे अनैतिक मानने वाले नजरिए को खत्म करना और इसे सिस्टमैटिक करना है। हालांकि, इससे निजी आजादी भंग होने की बात भी कही जा रही है। इस लिहाज से इसका विरोध भी शुरू हो गया है।
क्या हलाला कुप्रथा बन्द होगी ?

हलाला एक इस्लामिक ( Muslim rituals ) प्रथा है, जिसमें तलाकशुदा महिला को अपने पूर्व पति से दोबारा शादी करने के लिए किसी तीसरे इंसान से एक रात के लिए शादी करनी होती है। हैरानी की बात ये है कि बात बात पर तलाक देने वाले मर्द को सज़ा न देकर पीड़ित औरत को ही सज़ा मिलती है। हालांकि इसकी व्याख्या ऐसी की जाती है कि ये सज़ा उस उम्र मर्द के लिए है, जिसे अपनी बीवी ही शादी किसी और से करानी होगी। यह प्रथा अक्सर महिला अधिकारों और गरिमा के खिलाफ मानी गई है। यूसीसी में इसकी ज़रूरत खत्म कर दी गई है। लेकिन धार्मिक अधिकारों के ऊपर कानूनी हक़ लागू कर पाना क्या इतना आसान होगा, ये देखने वाली बात होगी।
UCC में हलाला प्रथा पर रोक
समान नागरिक संहिता ने हलाला प्रथा को अवैध घोषित किया है। इसके पीछे तर्क यह है कि यह महिला अधिकारों का हनन करती है और उन्हें जबरन सामाजिक असुरक्षा में डालती है। अब मुस्लिम महिलाओं के लिए भी तलाक और पुनर्विवाह के नियम समान होंगे।
कई शादियों पर रोक

हलाला ( halala ) के साथ ही, मुस्लिम समुदाय में प्रचलित बहुविवाह की प्रथा को भी समाप्त कर दिया गया है। अब दूसरी शादी की परमिशन तभी होगी, जब पहली पत्नी का निधन हो गया हो या कानूनी रूप से तलाक हो चुका हो।
UCC के अन्य प्रभाव
UCC केवल लिव-इन रिलेशनशिप और हलाला प्रथा तक सीमित नहीं है। इसके अन्य प्रभाव निम्नलिखित हैं:
- शादी की न्यूनतम उम्र समान: सभी धर्मों के लिए विवाह की आयु लड़कों के लिए 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष तय की गई है।
- संपत्ति में समान अधिकार: बेटियों को माता-पिता की संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा।
- गोद लेने का अधिकार: अब सभी धर्मों की महिलाओं को बच्चों को गोद लेने का समान अधिकार प्राप्त होगा।
विवाद और चुनौतियाँ
हालांकि UCC के समर्थन में व्यापक जनसमर्थन है, परंतु इसे लागू करने में कई चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं:
- धार्मिक स्वतंत्रता बनाम समानता: कुछ समूह इसे धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप मानते हैं।
- सामाजिक स्वीकृति: लिव-इन रिलेशनशिप जैसे मुद्दों को ग्रामीण और पारंपरिक समाजों में स्वीकार करना कठिन हो सकता है।
- व्यवहारिक जटिलताएँ: रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया और नियमों का पालन सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का लागू होना एक साहसिक और ऐतिहासिक कदम है। लिव-इन रिलेशनशिप और हलाला प्रथा पर रोक लगाने से महिलाओं और युवाओं के अधिकारों की रक्षा होगी और समाज में समानता की भावना को बढ़ावा मिलेगा। इसी तरह गैरज़रूरी लिव- इन-रिलेशनशिप पर भी रोक लगेगी।
हालांकि, इस कानून की सफलता इसके क्रियान्वयन पर निर्भर करेगी। इसे न केवल कानूनी तौर पर सख्ती से लागू करना होगा, बल्कि लोगों को इसके महत्व और लाभों के प्रति जागरूक भी करना होगा।

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